इस पोस्ट में आप इंसुलेटर बारे में जानेंगे Types of Insulators in Hindi, What is Insulator? साथ ही इंसुलेटर का काम, इसका महत्व क्या है। और Insulator in Electrical को फ़ोटो के साथ बहुत ही आसान तरीके समझाया गया है। हमारी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको इंसुलेटर के बारे में कही और से पढ़ने की जरूरत नही पड़ेगी।
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तो इस पोस्ट में Insulator in Hindi के बारे मे विस्तार से समझाया गया है। जिसमे इंसुलेटर क्या है, (Insulator Kya Hai Hindi) इंसुलेटर के प्रकार क्या है, कैसे काम करता है? अगर आप इस पोस्ट की PDF डाऊनलोड करना चाहते है तो इस पोस्ट लास्ट में डाउनलोड कर सकते हैं।
What is Insulator?
बिजली के सिस्टम में जितना महत्व कंडक्टर का होता है, उतना ही महत्व इंसुलेटर का भी होता है। अब जैसे कंडक्टर से इलेक्ट्रिसिटी का फ्लो होता है, ऐसे इंसुलेटर इलेक्ट्रिसिटी को फ्लो करने से रोकने के लिए उपयोग किये जाते हैं। इन्सुलेटर एक ऐसे पदार्थ/उपकरण होता है, जिसमें बिजली यानी इलेक्ट्रिकल पावर प्रवाहित नहीं हो सकती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन्सुलेटर जिस पदार्थ से बनते हैं, उसके परमाणुओं में जो इलेक्ट्रॉन होते हैं, उनका बांड इतना मजबूत होता है कि वो आसानी से फ्लो नहीं कर सकते।
अब इंसुलेटर से इलेक्ट्रिसिटी फ्लो ना हो इसके लिए इंसुलेटर को बनाने में अलग अलग मटेरियल का उपयोग होता है। जैसे कि कागज, प्लास्टिक, रबर, कांच आदि। अब कंडक्टर और सेमीकंडक्टर्स कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं, जिसमें से बिजली यानी इलेक्ट्रिकल पावर आसानी से फ्लो कर सकती है। अब ऐसे में इन्सुलेटर का प्रतिरोध कंडक्टर और सेमीकंडक्टर्स तुलना में बहुत ही ज्यादा होता है। तो ऐसे में इंसुलेटर का उपयोग मुख्य रूप से ऐसे कंडक्टर को कवर करने के लिए उपयोग किया जाता है जिनमे से इलेक्ट्रिकल पावर फ्लो करती हो।
उदाहरण के तौर पे देखें तो, आपने अपने घर पे ही बिजली का तार देखे होंगे, जिनके ऊपर प्लास्टिक की एक परत चड़ी होती है। जो तारों को पूरी तरह घेर के एक कवर बनाती है। ये परत या कवर ही बिजली को तार से बाहर फ्लो करने से रोकता है। इसके अलावा इन इंसुलेटर का उपयोग बिजली की डिस्ट्रीब्यूशन और ट्रांसमिशन लाइनों में लगने वाले पोल और टावरों में भी बड़े पैमाने पे किया जाता है।
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इंसुलेटर को वोल्टेज के आधार पर लगाया जाता है। HT और LT दोनो के लिए अलग अलग इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है। बिजली को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हुए तार और खम्भे के बिच में इंसुलेटर का लगाना बहुत ही जरुरी होता है। जो तार को सपोर्ट देने के साथ साथ पोल के अंदर बिजली के प्रवाह को भी रोकता है।
इंसुलेटर इतने इम्पोर्टेन्ट क्यों होते हैं?
अगर बात की जाए ट्रांसमिशन या डिस्ट्रीब्यूशन लाइन की तो इनमे इंसुलेटर का मुख्य काम कंडक्टर को टावर या पोल से अलग करना होता है। अब अलग करने से मतलब है कि कंडक्टर को टावर या पोल के साथ जोड़े भी रखना है और और टावर में बिजली का फ्लो होने से रोकना भी है। ये इंसुलेटर पोल और लाइन कंडक्टर के बीच मे प्रतिरोध के द्वारा एक अवरोध पैदा करते हैं।
किसी कंडक्टर में इलेक्ट्रिकल पावर का फ्लो तब होता है जब इलेक्ट्रॉन फ्लो करना शुरू करते हैं। अब जैसे कि इन्सुलेटर में जो इलेक्ट्रॉन होते हैं, उनका बांड इतना मजबूत होता है कि वो आसानी से फ्लो नहीं कर सकते। इसलिए ये करंट को पोल या बाकी अन्य चीजों में जाने से रोकते हैं। अगर इंसुलेटर का उपयोग सही से नहीं किया जाए, तो कंडक्टर में फ्लो करने वाला करंट पोल में भी फ्लो होने लगेगा। ऐसे में अगर पोल को कोई पशु या इंसान गलती से भी छू लेते हैं, तो उन्हें बहुत ही जोर झटका लगेगा। जिसके कारण उनकी मौत भी हो सकती है।
एक अच्छे इंसुलेटर में क्या क्या प्रोपर्टी होती है।
- एक इंसुलेटर की मैकेनिकल स्ट्रेंथ बहुत ही अच्छी होनी चाहिए।
- एक इंसुलेटर की डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ भी बहुत ही बढ़िया होनी चाहिए। इंसुलेटर की डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ जितनी ज्यादा होगी, उसको उतने ही ज्यादा वोल्टेज के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- जिस मटेरियल से इंसुलेटर बनता है, उसमें किसी भी तरह की मिलावट या फिर अशुद्धियां नहीं होनी चाहिए।
- इंसुलेटर पे तापमान की असर नहीं होना चाहिए।
- इंसुलेटर का रेजिस्टेंस भी बहुत बढ़िया होना चाहिए।
- जिस मटेरियल से इंसुलेटर बनाया जाए वो किसी भी आकार इसे में तैयार कर सकने वाला मटेरियल होना चाहिए।
- इंसुलेटर ले आग और पानी के साथ साथ वातावरण का भी कोई असर नहीं होना चाहिए। जैसे – सर्दी, गर्मी, बारिश, तूफान आदि।
इंसुलेटर कितने प्रकार के होते हैं
इंसुलेटर कितने प्रकार के होते हैं इसके बारे में बात की जाए तो इलेक्ट्रिकल ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइनों में उपयोग होने वाले मुख्य इंसुलेटर के प्रकार के बारे में नीचे बताया गया है।
इंसुलेटर के प्रकार
- Disc insulator (डिस्क इंसुलेटर)
- Post insulator (पोस्ट इंसुलेटर)
- Pin Type insulator (पिन इंसुलेटर)
- Strain insulator (स्ट्रेन इंसुलेटर)
- Suspension insulator (सस्पेंशन इंसुलेटर)
- Shackle insulator (शेकेल इंसुलेटर)
- Stay insulator (स्टे इंसुलेटर)
- Polymer insulator (पॉलीमर इंसुलेटर)
- Glass insulator (ग्लास इंसुलेटर)
- Long rod insulator (लोंग रॉड इंसुलेटर)
Disc insulator (डिस्क इंसुलेटर)
Disc insulator सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला इंसुलेटर है। जैसा कि हमे इसके नाम से पता चल रहा है, इस इन्सुलेटर का जो आकार होता है वो एक डिस्क की तरह होता है। यानी Disc insulators एक डिस्क की तरह दिखता है। इसलिए ही इसको डिस्क इंसुलेटर कहते हैं। Disc insulator का उपयोग हाई वोल्टेज ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइनों में किया जाता है। ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइनों के लिए आवश्यक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल ताकत (strength) अनुसार ही डिज़ाइन किया गया है।
इसके अलावा Disc insulators कम और मध्यम पॉल्युशन वाले वातावरण के लिए एक सस्ता और बहुत ही प्रभावी समाधान हैं। इन इंसुलेटरों का उपयोग ट्रांसमिशन लाइन, डिस्ट्रीब्यूशन लाइन और उद्योगों में भी किया जाता है। क्योंकि इनमें कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे जंग ना लगना, बहुत ही मजबूत होना आदि।
वैसे तो डिस्क इंसुलेटर को 11 kv के लिए बनाया जाता है, लेकिन डिस्क इंसुलेटर की डिस्क जोड़ जोड़ के इसको वोल्टेज के ज्यादा लेवल के लिए भी उपयोग कर सकते हैं। अब कितने kV पे हमे कितनी डिस्क लगानी होंगी इसके लिए भी एक फार्मूला होता है जिसको आप निचे देख सकते हैं।
N = V / (√3 × 11kV) + सेफ्टी फैक्टर
N = डिस्क की संख्या
V = वोल्टेज लेवल
√3 = 1.732 (अंडर रुट की वैल्यू)
11kV = एक डिस्क इंसुलेटर की कैपेसिटी
अब यहां 220kV का उदाहरण लेके समझते हैं।
अब जैसे यहां 220kV है, तो हमें इसको kV में नहीं सिर्फ वोल्ट में ही लिखना है। तो इसको हजार से गुणा करना होगा।
N = 220 ×1000/ (1.732 × 11000)
N = 220000 / 19052
N = 11.54 + सेफ्टी फैक्टर
तो कैलकुलेशन से हमें पता लग रहा है 11.54 तो हम इसको 12 मान कर चलते हैं। और इसके प्लस में जैसे हमने सेफ्टी फैक्टर दिखाया है। तो वह सेफ्टी फैक्टर भी हमें इसमें जोड़ना पड़ेगा। हम सेफ्टी फैक्टर 1, 2 या फिर 3 अपने वोल्टेज के वेरिएशन के हिसाब से जोड़ सकते हैं। तो ऐसे में अगर हम सेफ्टी फैक्टर 2 मानते हैं, तो 12+2 = 14 डिस्क हमें 220kv में लगानी पड़ेगी।
Advantages of Disc Insulator
- इसमें 11kV की वोल्टेज रेटिंग होती है, इसलिए एक डिस्क के सेट के साथ सस्पेंशन सिस्टम में आसानी से उपयोग किया जा सकता है।
- इसमे जिसपे कंडक्टर को लटकाया जाता है, वो सिस्टम बहुत ही लचीला होता है। जिसके कारण इसमें मेकैनिकल दबाव बहुत ही कम पड़ता है।
- अगर Disc Insulator की कोई डिस्क टूट जाती है, तो इसको बदलना बहुत ही आसान होता है।
- Disc Insulator पे गर्मी, सर्दी, बिजली, शोर आदि का कोई प्रभाव नही पड़ता।
Disadvantages of Disc Insulator
- Disc Insulator की स्ट्रिंग बाकी इंसुलेटर के मुकाबले महँगी होती है।
- जिन टावर के साथ Disc Insulator को उपयोग किया जाता है, उनकी उचाई ज्यादा रखनी होती है।
- Disc Insulator के साथ जो क्रॉस आर्म लगाई जाती है, उसकी लंबाई भी ज्यादा रखनी होती है।
- Disc Insulator का भार थोड़ा ज्यादा होता है, इसीलिए जिन टावर में इनको लगाया जाता है। उनकी ज्यादा मजबूत बनाया जाता है। ताकि ये टावर Disc Insulator का भार सहन कर सके।
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Post Insulators
Post Insulators हाई वोल्टेज में उपयोग होने वाले इन्सुलेटर हैं। ये मुख्य रूप से सबस्टेशन में उपयोग करने के लिए डिज़ाइन किये गए हैं। क्योंकि यह अलग अलग वोल्टेज के लेवल के लिए बहुत ही उपयोगी होते है। ये जनरेटिंग स्टेशन में बिजली में उत्पन्न होने के बाद बिजली के सुरक्षित और स्टेबल डिस्ट्रीब्यूशन सुनिश्चित करते हैं, इसी लिए इनका उपयोग किया जाता है।
Post Insulators सिरेमिक या सिलिकॉन रबड़ से बनाये जाते हैं और 1100kV तक की इलेक्ट्रिकल पावर के लिये बहुत ही सक्षम होते हैं। इसको वर्टिकल पोजिशन में लगाया जाता है। इसकी मैकेनिकल प्रॉपर्टी बहुत ही बढ़िया होती है। इसीलिए इनको ट्रांसफार्मर, स्विचगियर और बाकी जो भी दूसरे उपकरण इनके साथ जुड़े रहते हैं, इन सबके लिए ये पोस्ट इंसुलेटर बहुत ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं।
Advantages of Post Insulator
- इनकी केमिकल और थर्मल स्ट्रेंथ यानी मजबूती बहुत ही बढ़िया होती है।
- पोस्ट इंसुलेटर को सैकड़ों किलोवाट के साथ-साथ उनके मैकेनिकल लोड को झेलने के अनुसार आसानी से बनाया जा सकता है।
- इसका भार बहुत ही कम होता है। और इसके डैमेज होने यानी टूटने के चांस बहुत ही कम होते हैं।
Disadvantages of Post Insulator
- Post Insulator के हल्के होने के कारण, ये इसके सपोर्ट स्ट्रक्चर पे बहुत कम लोड डालते हैं।
- Post Insulator की कीमत बेशक बहुत ही कम हो, लेकिन इनकी लाइफ ज्यादा लंबी नहीं होती।
Pin Insulator
पिन इन्सुलेटर को बनाने में सिरेमिक, रबर, सिलिकॉन, पॉलीमर एवं पोर्सेलियन का उपयोग किया जाता है। अगर हम लौ वोल्टेज के लिए एक पिन इंसुलेटर का लगाते हैं। पिन इंसुलेटर का उपयोग 415V से 33kV तक किया जा सकता है।
पिन इंसुलेटर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल इलेक्ट्रिक पावर के डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में होता है यह एक ऐसा उपकरण है जो किसी पोल पर 1 पिन की मदद से लगाया जाता है। और कुछ बोल से जाने वाले तार को इस पिन इंसुलेटर पर बांधा जाता है जिससे यह पिन इंसुलेटर पोल और वायर के बीच में एक रुकावट यानी प्रतिरोध पैदा करता है। इनको ऐसे मटेरियल से बनाया जाता है, जिसमें इलेक्ट्रिक करंट फ्लो नहीं कर सकता। जैसे कि चीनी मिट्टी या फिर सिसा इन जैसी चीजों से पिन इंसुलेटर को मनाया जाता है।
पिन इंसुलेटर को अकेले या फिर 2, 3 या 4 जितनी भी संख्या में हम चाहे उतनी संख्या में उपयोग कर सकते हैं। यह हमारी वोल्टेज है उसके ऊपर निर्भर करता है, कि हमें कितनी वोल्टेज का डिस्ट्रीब्यूशन यानी वितरण करना है। पिन इंसुलेटर को 11kV तक की लाइन के लिए बहुत ही मजबूत मैकेनिकल स्ट्रैंथ वाले मैट्रियल से बनाया जाता है। Pin Insulator को हम वर्टिकल और होरिजेंटल दोनों तरह से लगा सकते हैं।
Advantages of Pin Insulator
- पिन इंसुलेटर की मैकेनिकल स्ट्रैंथ बहुत ही बढ़िया होने के साथ-साथ इसकी क्रीपेज भी बहुत बढ़िया होती है।
- हाई वोल्टेज पावर डिस्ट्रीब्यूशन के लिए पिन इंसुलेटर बहुत ही बढ़िया रहते हैं।
- पिन इंसुलेटर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसको हम वर्टिकली और होरिजेंटली दोनों तरह से उपयोग कर सकते हैं।
Disadvantages of Pin Insulator
- पिन इंसुलेटर को अरेंज करने के लिए हमें स्पिंडल की आवश्यकता पड़ती है।
- पिन इंसुलेटर को हम ज्यादा से ज्यादा 36kV तक सिर्फ डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में ही उपयोग कर सकते हैं।
- जिस पिन की सहायता से पिन इंसुलेटर को लगाया जाता है यह पिन इन इंसुलेटर की थ्रेड को खराब कर देती है।
Strain Insulators
स्ट्रेन इंसुलेटर को हाई मैकेनिकल स्ट्रैंथ के साथ-साथ केबल के बहुत ही ज्यादा खिंचाव को झेलने के लिए बनाया जाता है। Strain Insulator, सस्पेंशन टाइप इंसुलेटर की तरह ही होता है। इसको रेडियो एंटीना को सपोर्ट देने के साथ-साथ ओवरहेड पावर लाइनों में भी इस्तेमाल किया जाता है। स्ट्रेन इंसुलेटर का इस्तेमाल दो अलग-अलग लाइनों को जोड़ने के लिए भी किया जाता है।
इसका उदाहरण आपको रेलवे लाइन में देखने को मिलता है, जहां पर दो तरफ से आने वाली अलग अलग लाइन को आपस में बिना कनेक्शन किये ही एक दूसरे से जोड़ना होता है। तो ऐसे में स्ट्रेन इंसुलेटर इस्तेमाल किया जाता है। या जहां पे तार किसी पोल या टॉवर से जुड़ता है, वहां पे तार को खींचने के लिए उपयोग किया जाता है। इन इंसुलेटर की वोल्टेज क्षमता लगभग 33kV होती है।
Advantages of Strain Insulator
- स्ट्रेन इंसुलेटर को कांच, चीनी मिट्टी या फाइबरग्लास से आसानी से बनाया जा सकता है।
- स्ट्रेन इन्सुलेटर के क्षतिग्रस्त होने पे भी स्टे या मैन वायर जमीन पर नहीं गिरेता।
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Suspension Insulators
डिस्क इंसुलेटर को जोड़ जोड़ कर ही सस्पेंशन इंसुलेटर बनाया जाता है। यह इंसुलेटर भी टावर से लाइन को अलग करता है और साथ ही लाइन को सपोर्ट भी देता है। इस इंसुलेटर को हाई वोल्टेज और ओवरहेड लाइन में उपयोग किया जाता है।
सस्पेंशन इंसुलेटर आमतौर पर ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों में उपयोग किए जाते हैं। सस्पेंशन इंसुलेटर आमतौर पर चीनी मिट्टी से बनाये जाते हैं, और ट्रांसमिशन टावरों में उपयोग किये जाते हैं। सस्पेंशन इंसुलेटर को ट्रांसमिशन लाइन की क्षमता के अनुसार अलग अलग संख्या में डिस्क इंसुलेटर को जोड़ के बनाया जाता है।
Suspension Insulators टावर के क्रॉस आर्म पर लगा होता है, और इसके निचले सिरे पर पावर कंडक्टर लगाया जाता है। 33 kV के उच्च वोल्टेज पे इनका उपयोग किया जाता है। पिन इन्सुलेटर किफायती हो जाता है क्योंकि आकार, इन्सुलेटर का वजन अधिक हो जाता है। इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए, एक निलंबन इन्सुलेटर का उपयोग किया जाता है।
Advantages of Suspension Insulator
- इसमे लगने वाली हर एक डिस्क 11kV तक की वोल्टेज झेल सकती है।
- जरूरत पड़ने पे Suspension Insulator की स्ट्रिंग बदले बिना इसकी पूरी यूनिट को बदला जा सकता है।
- इसकी स्ट्रिंग को किसी भी दिशा में धुमाया जा सकता है तो इसके कारण ये बहुत ही फ्लेक्सिबल होता है।
- Suspension Insulator की लागत काफी कम होती है।
Disadvantages of Suspension Insulator
- पिन टाइप इंसुलेटर और पोस्ट टाइप इंसुलेटर की तुलना में Suspension Insulator की स्ट्रिंग महंगी होती है।
- कंडक्टर से ग्राउंड के बीच मे दूरी बनाए रखने के लिए टावर की ऊँचाई ज्यादा रखनी पड़ती है।
Shackle Type Insulator
Shackle Insulators आमतौर पर आकार में छोटे होते हैं और लौ वोल्टेज डिस्ट्रीब्यूशन में उपयोग किए जाते हैं। Shackle Insulators का उपयोग वर्टिकली और होरिजेंटल दोनों तरह से किया जा सकता है। इस इंसुलेटर को धातु की पट्टी का उपयोग करके लगाया जा सकता है और ये लगभग 33 kV का वोल्टेज ले जाने में सक्षम होते हैं।
Shackle Insulator के बीच मे एक V के आकर का ग्रूव होता है। इसमें से वायर डाल के लगाया जाता है। ये कंडक्टर के लोड को बड़ी आसानी से डिस्ट्रीब्यूट करता है। जिससे इसके टूटने का खतरा बहुत कम हो जाता है। डिसटीब्यूशन सिस्टम में जब से अंडरग्राउंड केबल का उपयोग होने लगा है, तब से इस इंसुलेटर का उपयोग बहुत ही कम होने लगा है।
- kW and kVA difference in Hindi
- Why Starter are Required to Run Motor [हिंदी]
- वोल्टेज बढ़ने से करंट बढ़ेगा या कम होगा
Advantages of Shackle Insulator
- अपनी पावर डिस्ट्रीब्यूशन की जरूरत के हिसाब से Shackle Insulator को आसानी से डिजाइन किया जा सकता है।
- Shackle Insulator को वर्टिकली और होरिजेंटली दोनों तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है।
- बहुत सारे विद्युत उपकरणों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ये सबसे बढ़िया रहता है।
Disadvantages of Shackle Insulator
- Shackle Insulator का उपयोग केवल लौ वोल्टेज डिस्ट्रीब्यूशन ग्रिड के लिए कियाजा सकता है।
Stay Insulators
Stay Insulators एक प्रकार का लो वोल्टेज में उपयोग किया जाने वाला इंसुलेटर है। Stay Insulators को पोल को सहारा देने के लिए लगाए जाने वाले स्टे वायर या मेन ग्रिप लगाने के लिए उपयोग करते हैं। साथ ही पोल पे लगने वाले काउंटर वेट के लिए भी इनका उपयोग होता है। Stay Insulators आकार में आयताकार होते हैं। और अन्य प्रकार के इन्सुलेटरो की तुलना में छोटे आकार के होते हैं।
Stay Insulator को लाइन, कंडक्टर और अर्थ के बीच में भी लगाया जा सकता है। इसके अलावा वोल्टेज में आने वाले अचानक आने वाले फाल्ट की हालत में भी ये इंसुलेटर सुरक्षा उपकरणों के रूप में कार्य करते हैं।
Advantages of Stay Insulator
- पोल को सहारा देने के लिए लगने वाले स्टे वायर के लिए ये सबसे ज्यादा उपयोगी होते हैं।
- Stay Insulator ट्रांसमिशन पोल के बीच इंसुलेटिंग सपोर्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
Disadvantages of Stay Insulator
- Stay Insulator का उपयोग केवल लौ वोल्टेज सिस्टम में ही किया जा सकता है।
Polymer Insulators
Polymer Insulators ऐसे विद्युत उपकरण हैं जो आमतौर पर पॉलीमर और धातु की फिटिंग से बने होते हैं। इसके अलावा ये इंसुलेटर फाइबरग्लास रॉड्स के ऊपर पॉलीमर वेदर शेड की परत चढ़ा के भी बनाये जाते हैं। ये वेदर शेड्स Polymer Insulators वातावरण की मार से इंसुलेटर को बचाती है।
पॉलिमर इंसुलेटर वजन में हल्के होने के साथ साथ पोर्सिलेन से बने इंसुलेटर की तुलना में ज्यादा मजबूत भी होते हैं। सामान्य तौर पर, Polymer Insulators गर्मी और बिजली दोनों के लिए बहुत ही अच्छे इन्सुलेटर होते हैं। इनके इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, रासायनिक और हीट प्रोपर्टी सबसे अलग होने कारण ही इसे एक इन्सुलेटर के रूप में उपयोग किया जाता है।
Advantages of Polymer Insulator
- एक पोर्सलीन यानी चीनी मिट्टी के इन्सुलेटर की तुलना में इन इन्सुलेटर tensile strength ज्यादा होती है।
- इनकी परफॉर्मेंस अन्य प्रकारों की तुलना में बहुत बढ़िया है, खासकर ज्यादा प्रदूषण वाले क्षेत्रों में।
- वजन हल्के होने के कारण ये पोल या टावर पे काम लोड डालते हैं।
- Polymer Insulator की हाइड्रोफोबिक प्रकृति के कारण इसके रखरखाव की आवश्यकता बहुत कम होती है।
Disadvantages of Polymer Insulator
- कोर और वेदर शेड के बीच गैप होने पर इसकी कोर में नमी जा सकती है। इसके कारण इंसुलेटर खराब हो सकता है।
- इसकी फिटिंग में ओवर-क्रिम्पिंग से कोर में दरार भी आ सकती है। जिसके कारण इंसुलेटर टूट सकता है।
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Glass Insulators
ये इंसुलेटर इलेक्ट्रिकल ट्रांसमिशन लाइनों में उपयोग किए जाने वाले इंसुलेटर हैं, जो आमतौर पर एनील्ड या टफ ग्लास (toughened glass) से बनाये जाते हैं। Glass Insulators का काम बिजली के तारों को इंसुलेट करना है, ताकि करंट पोल या टावर से होके धरती में लीक न हो।
ग्लास इंसुलेटर का उपयोग पहले टेलीग्राफ और टेलीफोन लाइनों में किया जाता था। जिनको बाद में सिरेमिक और चीनी मिट्टी के इंसुलेटर से बदल दिया गया था। साधारण कांच कमजोर होने के कारण toughened glass का उपयोग किया गया।
Advantages of Glass Insulator
- इसकी डाई इलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ पोर्सिलेन इंसुलेटर की तुलना में बहुत अधिक है।
- कांच के पारदर्शी होने के कारण इस इन्सुलेटर के अंदर हवा के बुलबुले और अशुद्धियों का आसानी से पता लगाया जा सकता है।
Disadvantages of Glass Insulator
- नमी के कारण इसकी सतह आसानी से संघनित हो सकती है। इसी वजह से इसका उपयोग कम वोल्टेज तक ही सीमित हो जाता है।
- हाई वोल्टेज के लिए कांच को अनियमित आकार में नहीं ढाला जा सकता। क्योंकि बाहरी और अंदरूनी तापमान के अंतर से बने तनाव के कारण कांच टूट सकता है।
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Long Rod Insulators
लांग रॉड इंसुलेटर का उपयोग आमतौर पर ट्रांसमिशन लाइनों को अलग करने के लिए टावरों पर होता है। इसके अलावा, सुरक्षित रूप से बिजली का ट्रांसमिशन करने से ये एक सुरक्षा उपकरण भी कहलाते हैं। उपयोग और आवश्यकता के आधार पर लॉन्ग रॉड इंसुलेटर को कई इंसुलेटर को जोड़ के बनाया जाता है।
Long Rod Insulators पोर्सिलेन की छड़ें होती हैं, जिनमें वेदर शेड और बाहर की तरफ मेटल एंड फिटिंग्स होती है। इस प्रकार के इन्सुलेटर को लगाने का लाभ ये है कि वे तनाव और ससपेंशन दोनों स्थानों में उपयोग किये जा सकते हैं।
Advantages of Long Rod Insulator
- लॉन्ग रॉड इंसुलेटर के बहुत से फायदे हैं, जैसे non-breakdown, good self-cleaning, low breakage आदि।
- प्रदूषण की स्थिति में Long Rod Insulator बेहतर इन्सुलेशन प्रदर्शन प्रदान करते हैं।
इंसुलेटर फैल क्यों होते हैं?
- Porosity
- Internal impurities
- Poor mechanical strength
- Aging effect
- High voltage breakdown
- Surface flashover due to dust and dirt
Porosity (सरंध्रता)
porcelain यानी चीनी मिट्टी से बने जो इंसुलेटर ट्रांसमिशन लाइन में उपयोग किये जाते है, वो porous (सरंध्रता) वाले होते हैं। अगर इन इंसुलेटर की सतह समतल और चिकनी ना हो, तो ये नमी को अपने अंदर सोख सकते हैं। अगर इंसुलेटर के अंदर नमी चली गयी, तो फिर इंसुलेटर का रेसिस्टेंस कम हो जाएगा। और इसके कारण leakage current बढ़ जायेगा।
Internal impurities (आंतरिक अशुद्धियाँ)
इन्सुलेटर को बनाते समय इनमे कुछ अशुद्धियाँ या फिर दरारें रह जाती हैं। अब इन सब अशुद्धियों के कारण ही इंसुलेटर की breakdown strength बहुत कम हो जाती है। इसके कारण ही कभी कभी rated voltage पे भी insulator के काम करने की क्षमता घट जाती है
Poor mechanical strength (खराब यांत्रिक शक्ति)
कभी कभी इंसुलेटर की डिज़ाइन करते समय कुछ कमी रह जाती हैं। तो इन कमियों की वजह से इंसुलेटर की मेकैनिकल strength कम हो जाती है। और जब ऐसे इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है, तो उसपे कंडक्टर के वजन और हवा का दबाव इस इंसुलेटर पे पड़ता है, तो इंसुलेटर टूटने का खतरा बना रहता है।
Aging effect (समय का प्रभाव)
जब एक इंसुलेटर को उपयोग करते हुए बहुत ज्यादा लंबा समय हो जाता है, तो ऐसे इंसुलेटर मे leakage current बढ़ जाता है। इसके कारण भी इंसुलेटर की breakdown strength कम होती है।
High voltage breakdown (हाई वोल्टेज ब्रेकडाउन)
Transmission line जब भी lightning यानी बिजली गिरती है, या किसी ओर कारण से ट्रांसमिशन लाइन में बहुत ज्यादा वोल्टेज आ जाती है, तो switching surge होता है। अगर ये surge वोल्टेज इंसुलेटर की कैपेसिटी से ज्यादा होती है, तो उससे इंसुलेटर पूरी तरह से ख़राब यानी काम करना छोड़ सकता है।
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धूल और गंदगी के कारण सरफेस फ्लैशओवर
जैसा कि आप सब जानते हैं, कि Insulators का ज्यादातर उपयोग बाहरी वातावरण में होता है। अब इसकी वजह से इंसुलेटर की सतह पर धूल और गन्दगी जमा हो जाती है। अब इस धूल और गंदगी के कारण इसकी इंसुलेटर के दोनों छोर पर flash over हो जाता है। और अगर ऐसी हालत में बारिश के मौसम में जब इस धूल और गंदगी के साथ नमी मिल जाती है, तो इसके कारण से भी flash over हो जाता है।
निष्कर्ष
जैसा कि आपको पहले ही बताया था, इंसुलेटर एक ऐसा उपकरण है जो अपने अंदर से आसानी से बिजली को पार नहीं होने देता। तो इस पोस्ट में, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइनों में उपयोग किए जाने वाले इंसुलेटर के प्रकारों के बारे में हमने यह पे अच्छे से जाना है। इन्सुलेटर चुनते dielectric factor, operating temperature, economic factor, and recognized material यर सब हमे जरूर देखना चाहिए।
तो उम्मीद है कि हमने insulator kya hai , Types of insulator in Hindi, इंसुलेटर कितने प्रकार के होते हैं, इनके बारे में लगभग सब कुछ सीख लिया होगा। यदि आपको अभी भी इनके बारे में कोई प्रश्न है तो आप कमेंट में पूछ सकते हैं। अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।
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Types of insulators pdf
FAQ
What is Insulator? इंसुलेटर क्या होते है?
इंसुलेटर एक ऐसा पदार्थ होता है जो अपने अंदर से विद्युत के प्रभाव को रोकता है, इसीलिए इनको इलेक्ट्रिकल में बहुत सारी जगह पर उपयोग किया जाता है। उदाहरण के तौर पे देखें तो, आपने अपने घर पे ही बिजली का तार देखे होंगे, जिनके ऊपर प्लास्टिक की एक परत चड़ी होती है। जो तारों को पूरी तरह घेर के एक कवर बनाती है। ये परत या कवर ही बिजली को तार से बाहर फ्लो करने से रोकता है। इसके अलावा इन इंसुलेटर का उपयोग बिजली की डिस्ट्रीब्यूशन और ट्रांसमिशन लाइनों में लगने वाले पोल और टावरों में भी बड़े पैमाने पे किया जाता है।
Disc insulator क्या होता है?
जैसा कि हमे इसके नाम से पता चल रहा है, इस इन्सुलेटर का जो आकार होता है वो एक डिस्क की तरह होता है। यानी Disc insulators एक डिस्क की तरह दिखता है। इसलिए ही इसको डिस्क इंसुलेटर कहते हैं।
इंसुलेटर के क्या-क्या फायदे होते हैं?
पिन इंसुलेटर की मैकेनिकल स्ट्रैंथ बहुत ही बढ़िया होने के साथ-साथ इसकी क्रीपेज भी बहुत बढ़िया होती है।
हाई वोल्टेज पावर डिस्ट्रीब्यूशन के लिए पिन इंसुलेटर बहुत ही बढ़िया रहते हैं।
पिन इंसुलेटर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसको हम वर्टिकली और होरिजेंटली दोनों तरह से उपयोग कर सकते हैं।
Shackle Insulators क्या होते हैं?
Shackle Insulators आमतौर पर आकार में छोटे होते हैं और लौ वोल्टेज डिस्ट्रीब्यूशन में उपयोग किए जाते हैं। Shackle Insulators का उपयोग वर्टिकली और होरिजेंटल दोनों तरह से किया जा सकता है। इस इंसुलेटर को धातु की पट्टी का उपयोग करके लगाया जा सकता है और ये लगभग 33 kV का वोल्टेज ले जाने में सक्षम होते हैं।
इंसुलेटर फेल होने के क्या क्या कारण होते हैं?
Porosity
Internal impurities
Poor mechanical strength
Aging effect
High voltage breakdown
Surface flashover due to dust and dirt
Types of Insulators?
Disc insulators (डिस्क इंसुलेटर)
Post insulators (पोस्ट इंसुलेटर)
Pin insulators (पिन इंसुलेटर)
Strain insulators (स्ट्रेन इंसुलेटर)
Suspension insulators (सस्पेंशन इंसुलेटर)
Shackle insulators (शेकेल इंसुलेटर)
Stay insulators (स्टे इंसुलेटर)
Polymer insulators (पॉलीमर इंसुलेटर)
Glass insulators (ग्लास इंसुलेटर)
Long rod insulators (लोंग रॉड इंसुलेटर)