Transformer Kya Hota Hai | ट्रांसफार्मर इन हिंदी

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Transformer Kya Hota Hai

Transformer Kya Hota Hai – ट्रांसफार्मर एक ऐसा स्टेटिक यानी स्थिर उपकरण है जो AC वोल्टेज को स्टेप डाउन या स्टेप अप करता है। लेकिन ट्रांसफॉर्मर AC की फ्रीक्वेंसी (Frequency) में कोई बदलाव नही करता। इसको हम कुछ इस तरह भी समझ सकते है कि ट्रांसफार्मर AC सप्लाई की फ्रीक्वेंसी (Frequency) को बदले बिना ही वोल्टेज के लेवल को स्टेप अप या स्टेप डाउन करता है।

अब जैसे कि ट्रांसफार्मर इलेक्ट्रिकल सप्लाई के लेवल को कम और ज्यादा करता है, तो इलेक्ट्रिकल सप्लाई के लेवल को ज्यादा करने वाला ट्रांसफार्मर स्टेप अप और इलेक्ट्रिकल सप्लाई के लेवल को कम करने वाला ट्रांसफार्मर स्टेप डाउन कहलाता है।

ट्रांसफार्मर हिस्ट्री

ट्रांसफार्मर का आविष्कार सबसे पहले Michael Faraday ने सन 1831 में और Joseph Henry ने सन 1832 में किया था। ट्रांसफार्मर के आविष्कार के बाद सन 1885 में ट्रांसफार्मर Alternating Current में पावर के ट्रांसमिशन, डिस्ट्रीब्यूशन और यूटिलिटी के लिए बहुत ही आवश्यक हो चुका था। उसके बाद से आज तक ट्रांसफार्मर हर छोटे से छोटे इलेक्ट्रिकल सिस्टम में उपयोग किया जाता है।

आज ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल इलेक्ट्रिसिटी में हर जगह हो रहा है। जैसे बड़े बड़े पावर स्टेशन से लेके एक छोटे से छोटे घर की उपकरणों में भी ट्रांसफार्मर का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में हो ही रहा है। और इन सभी जगहों पे ट्रांसफार्मर का काम सिर्फ एक ही होता है, और वो है वोल्टेज के लेवल को कम या ज्यादा करना।

तो आज की इस पोस्ट में हम आपको transformer kya hota hai, transformer in hindi, transformer hindi, ट्रांसफार्मर क्या है, ट्रांसफार्मर इन हिंदी, transformer kise kahate hain, transformer kya hai, के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं.

ट्रांसफार्मर एक स्थिर यानी स्टेटिक उपकरण इसीलिए है, क्योंकि इसमें कोई भी move करने वाला पार्ट नही होता यानी ट्रांसफार्मर में कोई भी पार्ट हिलने वाला नही होता। ट्रांसफार्मर mutual induction के सिद्धांत पे कार्य करता है। और mutual induction में DC सप्लाई पे काम करना सम्भव नहीं है। इसलिए ट्रांसफार्मर में DC सप्लाई का उपयोग नहीं किया जा सकता।

ट्रांसफार्मर की जरूरत क्या है?

हमारे पावर सिस्टम में सिंगल फेज सिस्टम के मुकाबले 3 फेज सिस्टम में ज्यादा फायदे होते हैं। इसलिए जनरेशन, ट्रांसमीशन और डिस्ट्रीब्यूशन का सारा सिस्टम 3 Phase सिस्टम होता है। इस सिस्टम को और अधिक एफिशिएंट बनाने के लिए अपने मानक वोल्टेज को निश्चित किया है। जोकि नीचे दिए गए हैं। जैसे :-

  • Generation Voltage = 11 KV
  • Transmission Voltage = 440 KV, 220 KV
  • Distribution Voltage = 132KV, 66KV, 33KV, 11KV
  • Utilization Voltage = 440 V और 230 V

ऊपर दिए गए वोल्टेज के देख के आप समझ सकते कि, इलेक्ट्रिसिटी को 11000 वोल्ट पे जनरेट किया जाता है। और इसके बाद जब इलेक्ट्रिसिटी को ग्राहक उपयोग में लेते है तो उस इलेक्ट्रिसिटी का लेवल 3 Phase 440v और सिंगल फेज 230v होता है। इससे आप ये समझ सकते हैं कि 11000 वोल्ट की इलेक्ट्रिसिटी जेनरेट करने के बाद और इस्तेमाल करने योग्य बनाने से पहले स्टेप अप और फिर 440 वोल्ट और 230 वोल्ट तक कम करके उपयोग किया किया जाता है।




तो इस प्रकार AC supply System पहले स्टेप अप और फिर स्टेप डाउन करने का जो भी काम होता है उसके लिए ही ट्रांसफार्मर की जरूरत पड़ती है। जब हम वोल्टेज को कम अथवा ज्यादा करते है तो उस समय इलेक्ट्रिकल पावर की फ्रीक्वेंसी और पावर में बदलाव नही होना चाहिए, ये दोनो सेम यानी पहले जैसी ही रहनी चाहिए। तो इस सबके लिए जिस उपकरण की आवश्यकता होती है, वो ट्रांसफार्मर ही होता है।

ट्रांसफार्मर का वर्किंग प्रिंसिपल

ट्रांसफार्मर का वर्किंग प्रिन्सिपल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन होता है। इसको आप म्यूचुअल इंडक्शन भी बोल सकते हैं। ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग होती है जिनमें से एक प्राइमरी वाइंडिंग और दूसरी सेकेंडरी वाइंडिंग होती है। जब ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग पे AC सप्लाई को कनेक्ट किया जाता है, तो उस वाइंडिंग के चारों तरफ एक मैग्नेटिक फील्ड बन जाती है।

और जब ये मैग्नेटिक फील्ड ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग के साथ इंटरैक्ट करती है तो सैकंडरी कोई में भी इलेक्ट्रॉन का फ्लो होने लगता है। इसके कारण हमें सेकेंडरी वाइंडिंग के दोनों सिरों के ऊपर आउटपुट में AC सप्लाई मिल जाती है।

आप ऊपर इस फ़ोटो में देख सकते हैं। इसे ट्रांसफॉर्मर की कोर कहा जाता है। इसके ऊपर ही ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग की जाती है। और फिर इन वाइंडिंग के पहले और आखरी सिरे को ट्रांसफार्मर निकाल निकल के ट्रांसफॉर्मर के टर्मिनल बनाया जाता है। और इन टर्मिनल के साथ ही हम इलेक्ट्रीकल सप्लाई को जोड़ते और प्राप्त करते हैं।

What is MMF | MMF क्या होता है

MMF का पूरा नाम Magneto motive force होता है। MMF का मतलब ये है की जब भी किसी वायर यानी कंडक्टर में वोल्टेज और करंट फ्लो होने पे कंडक्टर के आस पास एक मैग्नेटिक फील्ड बन जात है। ट्रांसफार्मर में इस मैग्नेटिक फील्ड के कारण ही इलेक्ट्रिकल एनर्जी प्राइमरी वाइंडिंग से सेकंडरी वाइंडिंग में पहुंचती है। जबकि मोटर की बात की जाए तो इसी मैग्नेटिक फील्ड के कारण ही मोटर का रोटर घूमता है।

इसके लिए आपको बस इतना ही याद रखना है कि जब किसी भी वायर यानी कंडक्टर में से हम AC वोल्टेज और करंट को फ्लो कराते हैं, तो उसके आस पास एक मैग्नेटिक क्षेत्र बन जाता है।

What is Electric Flux | फ्लक्स क्या है

ट्रांसफार्मर की बात की जाए तो ट्रांसफार्मर में फ्लक्स और मैग्नेटिक फील्ड आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए है। जब भी किसी वायर या वाइंडिंग में इलेक्ट्रिक करंट फ्लो करने के कारण मैग्नेटिक फील्ड बनती है, और उस मैग्नेटिक फील्ड के संपर्क में हम किसी दूसरे वायर या वाइंडिंग को लाते है। तो वो मैग्नेटिक फील्ड दूसरे वायर से अपने आप ही जुड़ जाती है। इसी प्रकिया को ही फ्लक्स कहा जाता है। अब ट्रांसफॉर्मर में ये मैग्नेटिक लाइन ट्रांसफार्मर के core से लिंक होके सेकंडरी वाइंडिंग में पहुंचती है, और इसको ट्रांसफार्मर के अंदर का फ्लक्स कहते हैं।

ट्रांसफार्मर के भाग | ट्रांसफार्मर पार्ट्स

ट्रांसफार्मर में छोटे और बड़े बहुत सारे कॉन्पोनेंट होते हैं। लेकिन ट्रांसफार्मर भी अलग अलग प्रकार के होते हैं। इसीलिए जिस तरह का ट्रांसफार्मर है उसके अंदर उसी के अनुसार कई तरह की कॉन्पोनेंट लगाए जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे कंपोनेंट होते हैं जो सभी तरह के ट्रांसफार्मर में लगाए जाते हैं। इस पोस्ट में हम इन्ही सब कॉन्पोनेंट के बारे में बात करेंगे और इन सभी के बारे में बताएंगे कि कौन सा कॉन्पोनेंट क्या काम करता है।

Transformer Cores

ट्रांसफार्मर में मुख्य दो तरह से बनाया जाता है।

  • Core Type
  • Shell Type

Core टाइप ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग को ट्रांसफार्मर की कोर के चारो तरफ लगाया जाता है। जबकि Shell टाइप ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग के चारो तरफ कोर होती है। ट्रांसफार्मर में उपयोग होने वाली कोर को सिलिकॉन स्टील की बहुत सारी पतली पतली पत्तियों द्वारा बनाया जाता है। कोर का इस्तेमाल ट्रांसफार्मर में होने वाले Iron loss, Eddy current Loss को कम करने के लिए किया जाता है।

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कोर में इस्तेमाल होने वाली सिलिकॉन स्टील की इन पत्तियों का आकार ट्रांसफार्मर के आकार के ऊपर निर्भर करता है। सिलिकॉन स्टील की इन पत्तियों को आपस में जोड़ के कोर बनाने के बाद इनपे वार्निश डाला जाता जाता है। ताकि जब भी ट्रांसफार्मर को इलेक्ट्रिसिटी से जोड़ा जाए तो इसमें पैदा होने वाली मैग्नेटिक फील्ड के कारण आवाज ना निकले। ट्रांसफार्मर में इस्तेमाल होने वाली ये पत्तियां E और I के आकार की होती है।

Coil | Winding

ट्रांसफार्मर में coil यानी वाइंडिंग की बात की जाए तो ट्रांसफार्मर के टाइप्स के ऊपर निर्भर करता है कि ट्रांसफार्मर में एक वाइंडिंग या दो वाइंडिंग या फिर दो से ज्यादा वाइंडिंग होती हैं। नॉर्मली एक ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग होती है। इनमे से एक के साथ इनपुट जोड़ा जाता है और एक से आउटपुट ली जाती है।

ट्रांसफार्मर की ये वाइंडिंग एक दूसरे से नहीं जुड़ी होती। मतलब प्राइमरी वाइंडिंग और सेकंडरी वाइंडिंग एक दूसरे से पूरी तरह से अलग अलग होती हैं। और दोनो वाइंडिंग के जो टर्न होते हैं जोकि कोर के चारों तरफ लपेटे जाते हैं, उनकी संख्या भी कम और ज्यादा होती है। प्राइमरी वाइंडिंग से सेकेंडरी वाइंडिंग में के बीच इलेक्ट्रिकल पावर का ट्रांसफर म्यूच्यूअल इंडक्शन के द्वारा होता है। जैसा कि इसके बारे में आपको पहले ही बताया था।

Primary Winding

ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग वो होती है, जिस वाइंडिंग पे AC इलेक्ट्रिकल पावर के रूप में इनपुट दी जाती है या जोड़ी जाती है। इसे ही प्राइमरी वाइंडिंग या प्राइमरी coil कहा जाता है।

Secondary Coil

ट्रांसफार्मर में सेकेंडरी वाइंडिंग वो होती है, जिसपे हमें AC इलेक्ट्रिकल पावर के रूप में आउटपुट मिलता है। या फिर है ये भी कह सकते हैं कि ट्रांसफार्मर की जिस वाइंडिंग के साथ लोड को जोड़ा जाता है उसको ही सेकेंडरी वाइंडिंग कहते हैं। सेकंडरी वाइंडिंग पे हमें जो AC वोल्टेज मिलती है वो प्राइमरी वाइंडिंग के मुकाबले कम या ज्यादा हो सकती है। ये ट्रांसफार्मर के टाइप पे निर्भर करता है।

Insulated Sheet

कभी कभी प्राइमरी वाइंडिंग और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच में या इनके ऊपर एक इंसुलेटेड सीट लगाई जाती है। ताकि किसी कारण से वाइंडिंग खराब होने के कारण ट्रांसफार्मर में शार्ट सर्किट ना हो। और ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को किसी भी प्रकार का नुकसान ना हो। इसीलिए ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग के साथ इंसुलेटेड सीट का इस्तेमाल किया जाता है।

Conservator Tank

Conservator Tank सिर्फ ऑयल टाइप ट्रांसफार्मर में ही होता है। जिसके अंदर ट्रांसफार्मर का तेल रहता है। ट्रांसफार्मर में तेल का इस्तेमाल ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि जब ट्रांसफार्मर काम करता है तो ट्रांसफार्मर में होने वाले पावर लॉस के कारण ट्रांसफार्मर बहुत गर्म हो जाता है। इसीलिए ट्रांसफार्मर का तापमान कम बनाए रखने के लिए तेल का इस्तेमाल किया जाता है।

जब ट्रांसफार्मर गर्म होता है तो साथ में तेल भी गरम हो जाता है। और गरम होने के साथ ही तेल फेल जाता है, तो ऐसे में ये तेल Conservator Tank में चला जाता है। और ठंडा होने के बाद वापस ट्रांसफार्मर के टैंक में आ जाता है। और यहां ट्रांसफार्मर की गर्मी सोंखने के बाद वापस Conservator Tank में चला जाता है।

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Oil Level Indicator

ट्रांसफार्मर के Conservator Tank में जो ऑयल होता है, तो इसको मापने के लिए इसके अंदर एक Indicator लगाया जाता है। जिससे हमे Conservator Tank में तेल की मात्रा का पता लग जाता है।

Bushing

ट्रांसफार्मर में Bushing का इस्तेमाल Live Conductor और ट्रांसफार्मर की बॉडी को अलग अलग रखने या इंसुलेट करने के लिए किया जाता है। और ये ट्रांसफार्मर के जितने भी टर्मिनल होते हैं, उन सभी पे लगाया जाता है।

Radiator

ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए ही ट्रांसफार्मर में रेडिएटर का इस्तेमाल किया जाता है। जैसे आपने देखा होगा गाड़ियों में भी इंजन को ठंडा बनाए रखने के लिए रेडिएटर काम आता है। ठीक उसी प्रकार ट्रांसफार्मर को भी ठंडा रखने के लिए रेडिएटर लगाते हैं। लेकिन इस रेडिएटर का उपयोग सिर्फ बहुत बड़े पावर ट्रांसफार्मर में ही किया जाता है।

Breather

ट्रांसफार्मर में Breather, Conservator tank के साथ जुड़ा रहता है। जब ट्रांसफार्मर में तेल गर्म होके Conservator tank और ठंडा होने के बाद ट्रांसफार्मर के मैन टैंक में आता जाता है, तो साथ में हवा भी ट्रांसफार्मर के अंदर आती है। जिसको ट्रांसफार्मर का सांस लेना भी कहा जाता है। तो ये Breather ट्रांसफार्मर के साँस लेने के काम आता है। ट्रांसफार्मर के अन्दर जाने वाली हवा breather से होके ही ट्रांसफार्मर में जाती है।

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Breather के अंदर सिलिका भरी होती है, जोकि बाहर से देखने पे नीले रंग की दिखती है। जब भी हवा ट्रांसफार्मर के अंदर जाती है तो ये सिलिका या हवा से सारी नामी सोंख लेती है। ताकि नमी के कारण ट्रांसफार्मर में कोई भी खराबी ना आए। सिलिका के अलावा Breather के नीचे एक छोटा सा कप भी लगा रहता है। इसमें थोड़ा सा तेल रहता है। जब ट्रांसफार्मर के अंदर हवा जाती है तो उस हवा के साथ कुछ छोटे कीट पतंगे भी आ जाते हैं तो वो सब इस तेल में फस जाते हैं। और ट्रांसफार्मर में साफ हवा जाती है।

Main Tank

Main Tank किसी भी ट्रांसफार्मर का मुख्य भाग होता है। ट्रांसफार्मर की core, winding आदि सब इसी टैंक के अन्दर होता है। ट्रांसफार्मर के इसी टैंक में oil डाला जाता है।

WTI (Winding Temperature Indicator)

ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग का तापमान देखने के लिए WTI (Winding Temperature Indicator) का इस्तेमाल किया जाता है। ट्रांसफार्मर के लगातार काम करते रहने के कारण ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग बहुत ही गरम हो जाती है। एक लिमिट से ज्यादा गरम हो जाने पे ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग जल सकती है। इसी लिए वाइंडिंग के तापमान को देखने के लिए ही WTI (Winding Temperature Indicator) ट्रांसफार्मर में लगाया जाता है।

इसमें आपको 2 तरह की सुई देखने को मिलेगी। जिसमे एक तो आपको वाइंडिंग के तापमान को बताती है। जबकि दूसरी पूरे दिन के सबसे ज्यादा गए तापमान के बारे में बताती है। जैसे पूरे दिन में ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग का तापमान ज्यादा से ज्यादा 60°C तक गया है तो ये 60 पे ही रुकी रहेगी। ऐसे ही ये आसानी से पता लग जाता है कि वाइंडिंग का सबसे ज्यादा तापमान कितना हुआ था।

OTI (Oil Temperature Indicator)

WTI की तरह ही ट्रांसफार्मर में OTI (Oil Temperature Indicator) का उपयोग किया जाता है। लेकिन अंतर ये है की OTI (Oil Temperature Indicator) वाइंडिंग की जगह ट्रांसफार्मर के तेल का तापमान दिखाता है। ट्रांसफार्मर में तेल को भी ज्यादा गरम होने से बचाना पड़ता है।

OTI (Oil Temperature Indicator) की बनावट और कार्य दोनो ही WTI की तरह ही होते हैं। दोनो ही दिखने में एक जैसे होते हैं। OTI (Oil Temperature Indicator) में भी दो सुई होती हैं। जिनकी काम WTI के जैसे ही होता है।

Transformer कितने प्रकार के होते हैं?

अब ट्रांसफार्मर को उसके कार्य करने के आधार पे, बनावट के आधार पे, इस्तेमाल करने आदि के आधार पे बहुत सी श्रेणियों में बांटा गया है। जिनके बारे में जानने के लिए आप ये हमारी नीचे वाली पोस्ट पढ़ सकते हैं।

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FAQ

  1. ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग और सेकंडरी वाइंडिंग के बीच में रेजिस्टेंस कितना होता है?

    अनन्त (Infinite)

  2. ट्रांसफार्मर के ब्रिदर किस लिए इस्तेमाल करते हैं?

    ट्रांसफार्मर के अंदर जाने वाली हवा से नमी सोंखने के लिए ब्रिदर का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही छोटे छोटे कीड़े, पतंगे आदि को भी हवा के साथ अंदर जाने से रोकने के लिए ब्रिदर का उपयोग किया जाता है।

  3. ट्रांसफार्मर की कोर किस से बनाई जाती है?

    सिलिकॉन स्टील द्वारा।

  4. Buchholz रिले का इस्तेमाल किस ट्रांसफार्मर में किया जाता है?

    Buchholz रिले का इस्तेमाल ऑयल टाइप ट्रांसफार्मर में किया जाता है।

  5. ट्रांसफार्मर का कार्य क्या होता है?

    ट्रांसफार्मर का कार्य वोल्टेज को कम या ज्यादा करना होता है।

  6. स्टेप अप ट्रांसफार्मर क्या होता है?

    जो ट्रांसफार्मर वोल्टेज को ज्यादा करता है वो स्टेप अप ट्रांसफार्मर होता है।

  7. स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर क्या होता है?

    जो ट्रांसफार्मर वोल्टेज को कम करता है वो स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर होता है।

  8. ट्रांसफार्मर में इस्तेमाल होने वाली सिलिका का रंग कैसा होता है?

    ट्रांसफार्मर में इस्तेमाल होने वाली सिलिका का रंग नीला होता है?

  9. सिलिका का रंग अगर हल्का गुलाबी क्यू हो जाता है?

    जब ट्रांसफार्मर में हवा जाती है तो सिलिका उस हवा से सारी नमी को सौंख लेती है। और नमी सौंखते सौंखते सिलिका का रंग बदल जाता है। रंग बदलने के बाद सिलिका और नमी नही सौंख पाएगी। इसी लिए रंग बदलने के बाद सिलिका को बदल देना चाहिए।

  10. ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइंडिंग कौनसी होती है?

    ट्रांसफार्मर में जिस वाइंडिंग पे इनपुट पावर सप्लाई जोड़ी जाती है, वो प्राइमरी वाइंडिंग होती है।

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