Transformer working principle in Hindi
Transformer working principle in Hindi – कौन से इलेक्ट्रिकल लॉ की वजह से ट्रांसफार्मर काम करता है? ट्रांसफार्मर में मेन पार्ट कौन कौन से हैं, ट्रांसफार्मर में स्टेप अप – स्टेप डाउन कैसे होता है? और ट्रांसफार्मर में कौन कौन से लॉस होते हैं, ये क्वेश्चन कई बार इलेक्ट्रिकल इंटरव्यू में पूछे जाते हैं। आप लोगों ने इसका अगर प्रॉपर आन्सर दे दिया तो आपके सेलेक्शन होने के चान्सेस बहुत बढ़ जाते हैं।
ट्रांसफार्मर के मुख्य पार्ट
दोस्तों ट्रांसफार्मर के कौन कौन से मेन पार्ट होते हैं? ट्रांसफार्मर में दो मेन पार्ट होते हैं। पहला है वाइंडिंग दूसरा है कोर।
ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग कुछ इस प्रकार से दिखती है
वाइंडिंग कॉपर की वायर को लपेट कर के बनाई जाती है। वायर का साइज करंट के ऊपर डिपेंड करता है। मतलब, वायर की मोटाई करंट के ऊपर डिपेंड करती है। ज्यादा करंट होगा तो ये वायर मोटा होगा।
ट्रांसफॉर्मर कॉइल
कोइल के अंदर हम लोग अगर इलेक्ट्रिकल सप्लाई देंगे तो क्या होगा? कोइल को इलेक्ट्रिकल सप्लाई मिलते ही कॉल के अंदर मैग्नेटिक फील्ड बनेगी।
AC करंट की वेवफॉर्म कैसी होती वो हमने ऊपर फोटो में दिखाया है। जिसके अंदर क्या होता है की वोल्टेज धीरे धीरे इन्क्रीज़ होता है, पीक पे जाता है फिर धीरे धीरे कम होता है, ज़ीरो पे आता है फिर नेगेटिव में जाता है फिर नेगेटिव में पीक पे जाता है। फिर वहा से धीरे धीरे वोल्टेज कम होना स्टार्ट होता है, फिर ज़ीरो पे जाता है।
यानि के एसी करंट की फॉर्म पहले जीरो से स्टार्ट होकर धीरे धीरे इन्क्रीज़ होके 230 तक पहुंचता है, फिर धीरे धीरे कम होना स्टार्ट होता है, और धीरे धीरे कम होके ज़ीरो पे आता है। फिर और कम होके माइनस में जाता हैवोल्टेज माइनस में कम होते होते 230 तक जाता है। फिर वापस धीरे धीरे बढ़ना शुरू होता है। और ऐसे ही ये वेवफॉर्म चलती रहती है।
वाइंडिंग या कॉइल पे AC सप्लाइ के इफेक्ट?
तो जब हम वाइंडिंग पे एसी सप्लाई देते है, तो जैसे जैसे हमारा वोल्टेज इन्क्रीज़ होता है तो कुछ मैग्नेटिक फील्ड बनेगी जो की थोड़ी वीक होगी, जैसे ही वोल्टेज इन्क्रीज़ हो के 230 वोल्ट तक पहुंचेगा। तो ये मैग्नेटिक फील्ड स्ट्रॉन्ग हो जाएगी। इसके बाद वोल्टेज कम होना स्टार्ट हो जाएगा तो मैग्नेटिक फील्ड भी वापस कम होना स्टार्ट हो जाएगी, फिर वोल्टेज ज़ीरो पे आजायेगा तब मैग्नेटिक फील्ड ज़ीरो हो जाएगी।
इसके बाद वापस से वोल्टेज नेगेटिव में जाने लगेगा। तो जो मैग्नेटिक फील्ड है वो उल्टा बनने लग जाएगी। तो जैसे नेगेटिव 100 वोल्टेज पे पहुंचेगा तो मैग्नेटिक में थोड़ी सी स्ट्रॉग होगी, जैसे नेगेटिव 230 वोल्ट पहुंचेगा तो हमारी मैग्नेटिक फील्ड स्ट्रॉन्ग होगी। और ये ऐसे कंटिन्यू साइकिल चलती रहती है तो क्या हमारी कंटिन्यू मैग्नेटिक फील्ड बनती रहेंगी। कभी ये कम होगी कभी उल्टा मैग्नेटिक फील्ड बनेगी, फिर ज्यादा होगी, फिर वापस उल्टी मैग्नेटिक फील्ड बनेगी। ऐसा कंटिन्यू चलता रहता है।
कंडक्टर पे मैग्नेटिक फील्ड का इफेक्ट
तो जब भी हम किसी कंडक्टर को मैग्नेटिक फील्ड के अंदर रखेंगे तो हमारा जो कन्डक्टर है वो मैग्नेटिक फील्ड को कट करेगा। मैग्नेटिक फील्ड को कट करने की वजह से कंडक्टर में EMF बनेगा। EMF मतलब इलेक्ट्रोमोटिव फोर्स। EMF का मतलब वोल्टेज ही होता है, लेकिन मैग्नेटिक फील्ड की भाषा में हम उसको EMF बोलते हैं।
तो ये जो कन्डक्टर है वो मैग्नेटिक फील्ड को कट कर रहा है। उसकी वजह से इस कंडक्टर के अंदर EMF प्रोड्यूस होगा। लेकिन इस कंडीशन में कंडक्टर के अंदर EMF एक बार प्रोड्यूस होगा, क्योंकि जो मैग्नेटिक फील्ड है वो ऊपर से नीचे की तरफ आ रही है। अगर हमें कन्डक्टर में बार बार ये EMF जेनरेट कराना है तो उसके लिए हमें चेंजिंग मैग्नेटिक फील्ड को रखना पड़ेगा। मतलब, मैग्नेटिक फील्ड एक बार ऊपर से नीचे आये, फिर नीचे से ऊपर जाए, ऐसा कंटिन्यू होता रहेगा तो उसकी वजह से कंडक्टर के अंदर कंटिन्यू मैग्नेटिक फील्ड जनरेट होगी।
तो कंटिन्यू चेंज होने वाली मैग्नेटिक फील्ड हमे एसी सप्लाई में मिलती है, कंडक्टर को हम जब मैग्नेटिक फील्ड के अंदर रखते हैं तो उसके अंदर EMF जेनरेट होता है। ये जो EMF जेनेरेट हुआ है ये फराडे लॉ ऑफ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन से हुआ है। इसको म्यूचुअल इंडक्शन भी बोलते हैं। तो EMF फराडे लॉ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन की वजह से जेनरेट हुआ।
ट्रांसफार्मर कैसे काम करता है।
अब हम देख लेते हैं कि ट्रांसफार्मर कैसे वर्क करता है। मान लीजिये की एक वाइंडिंग है, जैसे ऊपर फोटो में दिखाया गया है। इसके अंदर अभी हम सप्लाई देंगे तो क्या होगा? तो दोस्तों जैसे हम वाइंडिंग को इलेक्ट्रिकल सप्लाई देंगे तो वाइंडिंग के अंदर मैग्नेटिक फील्ड बनना शुरू हो जाएगी। अगर हम इस वाइंडिंग को एसी सप्लाई देंगे, तो इसके अंदर कंटिन्यू चेंज होने वाली मैग्नेटिक फील्ड बनेगी।
यहाँ पे जो वाइंडिंग है ये मैग्नेटिक फील्ड बना रही है। अब एक दूसरी वाइंडिंग को इसके नजदीक ला के रख देंगे तो क्या होगा? तो पहली वाइंडिंग में मैग्नेटिक फील्ड बना रही है क्योंकि इसको हमने इलेक्ट्रिकल सप्लाई दी हुई है। और ये जो दूसरी वाइंडिंग है, और ये जो मैग्नेटिक फील्ड बन रही है, ये दूसरी वाइंडिंग उस मैग्नेटिक फील्ड को कट कर रही है। तो हमारी जो दूसरी वाइंडिंग इस मैग्नेटिक फील्ड को कट कर रही है उसकी वजह से क्या होगा?
तो जो ये दूसरी वाइंडिंग है इसके अंदर emf जेनरेट होगा। जैसा कि हमने पहले बताया था की मैग्नेटिक फील्ड के अंदर अगर हम कोई कन्डक्टर रखते हैं तो उस कंडक्टर के अंदर emf जेनरेट होता है। उसी प्रकार से ये जो मैग्नेटिक फील्ड है, जो की पहली वाइंडिंग बना रही है, उस मैग्नेटिक फील्ड के अंदर हमने दूसरी वाइंडिंग को रख दिया तो क्या होगा?
जैसा कि आप ऊपर फोटो में देख सकते हैं कि यहाँ पे जो मैग्नेटिक फील्ड है, वो सारा उपयोग में नहीं या रहा। इसमे एक तरफ की मैग्नेटिक फील्ड वेस्ट हो रही है। मतलब यहाँ पे 50% से 70% तक मैग्नेटिक फील्ड वेस्ट हो रही है। तो ये मैग्नेटिक फील्ड वेस्ट ना हो उसके लिए हम कोर का उपयोग करते हैं। ये जो कोर होता है ये मैग्नेटिक फील्ड को वेस्ट होने से बचाता है।
कौर मैग्नेटिक फील्ड को वेस्ट होने से कैसे बचाता है?
अब ऊपर फोटो में आपको ट्रांसफार्मर का कोर दिखाया गया है। इस कोर के एक साइड में हमने प्राइमरी वाइडनिंग को लपेट दिया है। और दूसरी तरफ सेकंडरी वाइंडिंग को लपेट दिया है। तो जब भी हम प्राइमरी वाइडनिंग पे इलेक्ट्रिकल सप्लाई देंगे तो क्या होगा? तो दोस्तों जैसे ही हम प्राइमरी वाइडनिंग पे इलेक्ट्रिकल सप्लाई तो ये वाइंडिंग मैग्नेटिक फील्ड बनाएगी। जैसे कि आपने पहले देखा था जब वाइडनिंग में जब हम इलेक्ट्रिकल सप्लाई दे रहे थे, तो प्राइमरी वाइडनिंग क चारों और मैग्नेटिक फील्ड बन रहा था।
लेकिन इस केस में जहा हम कोर का उपयोग कर रहे हैं, तो कोर की वजह से ये मैग्नेटिक फील्ड बाहर नहीं जा पाएगी और सारी मैग्नेटिक फील्ड कोर में ही बनेगी। मतलब कोर का काम मैग्नेटिक फील्ड को पकड़ के रखने या फिर मैग्नेटिक फील्ड को रास्ता दिखाने का होता है। तो अब ये जो मैग्नेटिक फील्ड जिसको हम यूज़ कर रहे हैं उसको हम मैग्नेटिक फ्लक्स कहते है। तो अब ये मैग्नेटिक फील्ड या फ्लक्स है ये कोर से होती हुई सैकण्डरी वाइंडिंग पे जाके सैकण्डरी वाइंडिंग को कट करेगी। अब ऐसा होने से सैकण्डरी वाइंडिंग में भी emf जेनरेट होगा।
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तो इससे क्या समझ आया? जब हम प्राइमरी वाइंडिंग पे इलेक्ट्रिकल सप्लाई देंगे तो, प्राइमरी वाइंडिंग मैग्नेटिक फील्ड बनाएगी, और कोर होने की वजह से मैग्नेटिक फील्ड बाहर नहीं जा पाएगी यानि वेस्ट नहीं हो पाएगी।, कोर इसको अट्रैक्ट करके रखेगा यानि बाहर नहीं जाने देगा। तो ये मैग्नेटिक फील्ड कोर से होते हुए सेकंडरी वाइंडिंग पे आएगी, और ये मैग्नेटिक फील्ड सेकंडरी वाइंडिंग को कट करेगा, कट होने की वजह से सैकंडरी वाइंडिंग के अंदर emf जेनरैट होगा।
अब emf का मतलब वोल्टेज ही होता है, तो अब सैकंडरी वाइंडिंग में ये वोल्टेज कहाँ से और किस लॉ की वजह से आया? तो ये वोल्टेज फराडे के लॉ ऑफ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इन्डक्शन की वजह से आया। तो जैसा आपने यहाँ देखा कि प्राइमरी वाइंडिंग से सैकंडरी वाइंडिंग में बिना तार टच हुए वोल्टेज आ गया। तो इसी लिए इसको फराडे लॉ ऑफ म्यूचुअल इंडक्शन भी कहा जाता है।
ट्रांसफार्मर में स्टेप अप और स्टेप डाउन कैसे होता है?
तो अब बात करते हैं स्टेप अप और स्टेप डाउन क्या और कैसे होता है। तो स्टेप अप और स्टेप डाउन क्या होता है ये समझने क लिये निचे दिया गया फोटो देख सकत हैँ।
तो ये जो (A) ट्रांसफार्मर दिखाया है इसके अंदर हमने 200 वोल्ट का इनपुट दिया है और आउटपुट में 100 वोल्ट मिल रहा है, यानि के हमने ज्यादा वोल्टेज का इनपुट दिया और आउटपुट में कम वोल्ट यानि सिर्फ 100 वोल्ट मिल रहे है, मतलब वोल्टेज कम होके मिल रहे हैं तो इसको हम स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर कहेगे।
वही पे (B) दूसरे केस में में हमने 200 वोल्ट इनपुट में प्राइमरी वाइंडिंग पे दिया और आउटपुट में सैकंडरी वाइंडिंग पे 400 वोल्ट मिल रहा है, तो इस केस में इनपुट वोल्टेज कम था और आउटपुट वोल्टेज ज्यादा मिल रहा है। तो इसको हम स्टेप अप ट्रांसफार्मर कहेंगे।
ट्रांसफार्मर में स्टेप अप और स्टेप डाउन प्राइमरी वाइंडिंग और सैकंडरी वाइंडिंग के नम्बर ऑफ टर्न के ऊपर निर्भर करता है। मतलब वाइंडिंग मव हमने तार को कितनी बार लपेट है।
ट्रांसफार्मर में कौन कौन से लॉस होते हैं?
तो जैसा कि हमने पहले बताया था कि ट्रांसफार्मर में दो मुख्य पार्ट होते हैं, पहला कोर और दूसरा वाइंडिंग। तो ट्रांसफार्मर में ये लॉस इन्हीं दो पार्ट्स के अंदर होता है। ट्रांसफार्मर की कोर के अंदर दो प्रकार के लॉस होते हैं। कोर लॉस के अंदर पहला लॉस हयस्टेरेसिस लॉस और दूसरा लॉस एडी करंट लॉस होता है। हयस्टेरेसिस लॉस मैग्नेटिक फील्ड के ऊपर होता है। इसको कम करने के लिए हम कोर को सिलिकॉन स्टील के मटेरियल से बनाते हैं। एडी करंट लॉस को कम करने के लिए हम कोर बनाने के लिये सिलिकॉन स्टील के पतले पतले शीट का यूज़ करते है। जिससे कि एडी करंट लॉस कम हो जाता है
और वही पे हमारा दूसरा मेन पार्ट यानि वाइंडिंग के अंदर भी लॉस होता हैं। ये कापर लॉस होता है। ये लॉस हमारी वाइंडिंग के रेजिस्टेंस की वजह से होता है।
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FAQ
ट्रांसफार्मर और कार्य सिद्धांत क्या है?
जब ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुंडली को प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से जोड़ा जाता है। तो प्राथमिक कुंडली में धारा प्रवाहित होने लगती है।
ट्रांसफार्मर का काम क्या है?
वोल्टेज को स्टेप अप स्टेप डाउन करना
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