CT vs PT | Difference between CT and PT [हिंदी]

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Difference between ct and pt in Hindi

Difference between ct and pt in Hindi – करंट ट्रांसफार्मर और पोटेंशियल ट्रांसफार्मर दोनों का ही काम लगभग एक जैसा होता है। लेकिन इनमे कुछ अंतर भी होते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि ट्रांसफार्मर का काम वोल्टेज को कम या ज्यादा करना होता है। ठीक इसी प्रकार से वोल्टेज को कम या ज्यादा करके मापने और सेफ्टी करने का काम CT और PT करते हैं।

इस पोस्ट में आप जानेंगे कि “करंट ट्रांसफार्मर और पोटेंशियल ट्रांसफार्मर” क्या होते हैं। और इन दोनों में क्या क्या अंतर होते है। अब एक एक करके CT और PT के बारे में जान लेते हैं।

करंट ट्रांसफार्मर क्या होता है (What is Current Transformer)

करंट ट्रांसफार्मर एक उपकरण होता है, जो हाई करंट को लौ करंट में बदलता है। यानी आप ये भी कह सकते हैं कि CT एक स्टेप अप ट्रांसफार्मर होता है। क्योंकि ट्रांसफार्मर में जब वोल्टेज हाई होता है तो करंट लौ होता है। हमारी HT की जो ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन होती हैं, उनमे बहुत ज्यादा मात्रा में करंट फ्लो करता है और इतने ज्यादा करंट को डायरेक्ट मापना बाहर ही मुश्किल भरा काम होता है।

इसलिए इस हाई करंट को कम करके मापने के लिए करंट ट्रांसफार्मर का प्रयोग किया जाता है। हम इस CT के द्वारा हाई करंट को लौ में बदल देते हैं, जिसके बाद इस करंट को बहुत ही आसानी से मापा जा सकता है। सबसे पहले एक तरंग से करंट ट्रांसफार्मर को मुख्य लाइन से जोड़ते हैं, ताकि करंट की वैल्यू को मापा जा सके। और दूसरी तरफ करंट ट्रांसफार्मर को एममीटर से जोड़ के करंट की वैल्यू को मापा जाता है।

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर क्या होता है (What is Potential Transformer)

PT यानी पोटेंशियल ट्रांसफार्मर को वोल्टेज ट्रांसफार्मर भी कहा जाता है। ये एक ऐसा उपकरण होता है, जिसका उपयोग हाई वोल्टेज को लौ वोल्टेज में बदलने के लिए किया जाता है। इसको आप स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर भी कह सकते हैं। पोटेंशियल ट्रांसफार्मर के प्राइमरी टर्मिनल के मुख्य लाइन के साथ समानांतर जोड़ा जाता है, और सेकंडरी टर्मिनल को वोल्टमीटर से जोड़ा जाता है।

ऐसा करके ही हम मुख्य लाइन के हाई वोल्टेज को मापते हैं। ये ट्रांसफार्मर हाई वोल्टेज को लौ वोल्टेज में बदल देता है। जिसके बाद वोल्टमीटर पे हम वोल्टेज के लेवल को आसानी से देख सकते हैं।

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करंट ट्रांसफार्मर और वोल्टेज ट्रांसफार्मर में क्या अंतर है (Difference between CT and PT in Hindi)

CTPT
CT को करंट मापने के लिए इस्तेमाल करते हैं, इसको करंट ट्रांसफार्मर कहते हैं।PT को हम वोल्टेज मापने के लिए इस्तेमाल करते हैं, इसे पोटेंशिअल ट्रांसफार्मर कहते हैं, इसे वोल्टेज ट्रांसफार्मर भी कह देते हैं।
CT की प्राइमरी वाइंडिंग लोड से साथ सीरीज में जुडी होती है।PT की प्राइमरी वाइंडिंग लोड से साथ पैरलल में जुडी होती है।
CT में करंट को स्टेप डाउन करते हैं। PT में वोल्टेज को स्टेप डाउन करते हैं।
CT में प्राइमरी वाइंडिंग, सेकेंडरी वाइंडिंग से छोटी होती है।PT में प्राइमरी वाइंडिंग, सेकेंडरी वाइंडिंग से बड़ी होती है।
CT बार टाइप CT में प्राइमरी वाइंडिंग नही होती इसमें बसबार या तार को ही प्राइमरी वाइंडिंग की तरह इस्तेमाल करते हैं।PT में इसकी प्राइमरी वाइंडिंग होनी जरूरी है।
CT की प्राइमरी वाइंडिंग पे वोल्टेज कम होता है।PT की प्राइमरी वाइंडिंग पे वोल्टेज ज्यादा होती है।
CT में आउटपुट को ओपन नही रख सकते।PT में हम आउटपुट को ओपन यानि खुला रख सकते हैं।
CT के आउटपुट पे हाई रेसिस्टिव लोड लगाना सुरक्षित नही होता।PT के आउटपुट पे लौ रेसिस्टिव लोड लगाना खतरनाक होता है।
CT में इम्पीडेन्स कुछ खास मायने नही रखता।PT में इम्पीडेन्स बहुत ही ज्यादा मायने रखता है।
CT में आउटपुट ज्यादातर एक ही होती है।PT में बहुत सारे आउटपुट हो सकते हैं।
CT में लोड बदलने से आउटपुट वोल्टेज पे बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है।PT में लोड बदलने से वोल्टेज में बहुत कम प्रभाव पड़ता है।
CT का डिजाईन करंट के बहुत ज्यादा वेरिएशन को देखते हुए किया जाता है।PT का डिजाईन बहुत कम वेरिएशन के लिये होता है।
CT डिजाईन करने के लिए सिस्टम शार्ट करंट ज्यादा मायने रखता है।PT को डिजाईन करते समय सिस्टम शार्ट सर्किट करंट ज्यादा मायने नहीं रखता।
CT का डिजाईन हाई शार्ट टाइम करंट रेटिंग के लिए डिजाईन किया जाता है। मतलब अगर बहुत  समय शर्ट सर्किट होता है तो CT सुरक्षित रहना चाहिए।PT के डिजाईन में इसकी कोई जरुरत नही पड़ती।
CT में इनपुट करंट की एक्यूरेसी रखनी बहुत मुश्किल होता है।PT में  इनपुट वोल्टेज एक्यूरेसी रखना बहुत आसान होता है।

Symbol of CT and PT

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