इस पोस्ट में हम कूलिंग टावर के प्रकार | Types of Cooling Tower in Hindi के बारे में बात करने वाले हैं। इसके साथ ही कूलिंग टावर काम कैसे करता है, कूलिंग टावर के पार्ट्स और कूलिंग टावर में जो पानी डाला जाता है उसके पैरामीटर क्या क्या होने चाहिए, इसके बारे में भी हम बताने वाले हैं। तो Cooling Tower से जुड़ी सभी बातें जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा पढ़िए।
कूलिंग टावर की pdf नीचे से डाउनलोड करें।
What is Cooling Tower?
पानी को हवा द्वारा ठंडा करने के लिए जो मशीन लगाई जाती है, उसको ही Cooling Tower कहते है। इसका ज्यादातर इस्तेमाल बड़ी बड़ी इमारतों और उद्योगों में किया जाता है। उद्योगों में चिलर प्लांट, केमिकल का रिएक्शन, जनरेटर और मशीनरी आदि काम करते रहने के कारण बहुत सी गर्मी पैदा होती रहती है। इसके लिए ही पानी का इस्तेमाल किया जाता है ताकि गर्मी को कम किया जा सके। लेकिन जब ये पानी इन मशीनों को ठंडा करता है तो खुद गर्म हो जाता है। तो इसे ठंडा करके फिर से इस्तेमाल करने के लिए ही कूलिंग टावर का इस्तेमाल किया जाता है।
Cooling Tower के काम करने का सिद्धांत
Cooling Tower के काम करने का सिद्धांत Evaporation होता है। पानी को ठंडा करने के लिए किसी भी दूसरे विकल्प से यह सिस्टम बहुत ही सस्ता और कारगर है। इसमें पानी सीधा ही हवा के संपर्क में आता है इसके साथ पानी का एरिया बढ़या जाता है। जिससे ज्यादा से ज्यादा गरम पानी ठंडी हवा के संपर्क में आता है और जल्दी से ठंडा होता है।
Cooling Tower की कार्यप्रणाली
हमारे उद्योगों में बहुत सारी ऐसी चीजें या काम होते हैं, जिनमें से बहुत सारी गर्मी लगातार निकलती रहती है। अब इस लगातार निकलने वाली गर्मी को भी हमें कंट्रोल करना होता है, ताकि जो हमारी मशीनें हैं, हमारा सिस्टम है वो सही से काम करता रहे। इस गर्मी को खत्म करने या दूर करने के लिए ज्यादातर जगह पे हम पानी का उपयोग करते हैं। अब इस पानी से गर्मी दूर करने के लिए ही हमें कूलिंग टावर वाला सिस्टम लगाना पड़ता है।
अब जो पानी गर्म हो जाता है, वो कूलिंग टावर के उपर की तरफ हेड में आता है। यहाँ पे कूलिंग टावर के हेड में कुछ नोजल लगाई जाती है। इन नोजल के द्वारा इस पानी को नीचे छिड़का जाता है। या यूं कहें कि इस गर्म पानी की एक तरीके से बारिश की जाती है। इस तरह से छिड़काव करने से पानी का सरफेस एरिया बढ़ जाता है। अब ये नोजल के द्वारा छिड़का गया पानी कूलिंग टावर में लगी फिंस के ऊपर आकर गिरता है।
इन फिन्स में थोड़ी थोड़ी जगह होती है, जहाँ से पानी और हवा ऊपर और नीचे होते रहते हैं। आप कुछ ऐसे भी समझ सकते हैं कि कूलिंग टावर में फिन्स के रूप में एक जाली लगी रहती है, जिसमें पतले पतले छेद होते हैं। और इन छेद से पानी ऊपर से नीचे जाता है, और नीचे से हवा ऊपर की तरफ जाती है। अब जो हवा ऊपर की तरफ से निकलती है, वो गर्म हो जाती है और जो पानी नीचे गिरता है वो ठंडा हो जाता है। और ठण्डा होने के बाद ये पानी फिर से आगे कंडेनसर में चला जाता है।
Types of Cooling Tower
अब Cooling Tower के Types के बारे में बात करें, तो कूलिंग टावर भी अलग-अलग तरह के होते है। लेकिन Cooling Tower का मुख्य काम पानी को ठंडा करना ही होता है।
एयर ड्राफ्ट के आधारित कूलिंग टावर
नेचुरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर
नेचरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर में हवा का फ्लो अपने आप नेचरली फ्लो होता है। यानी जिस हवा से पानी को ठंडा किया जाता है, उसको पैदा करने के लिए किसी भी प्रकार के कोई उपकरण इस्तेमाल नही किया जाता। या फिर यूँ कहें कि प्राकृतिक तरीके से बह रही हवा से ही पानी को ठंडा किया जाता है। इसीलिए इसको नेचरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर कहा जाता है।
नेचुरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर मैं हवा का जो प्राकृतिक भाव यानी चलो होता है उसके द्वारा ही पानी को ठंडा किया जाता है अब इस प्राकृतिक हवा को पैदा करने के लिए हमें किसी अन्य उपकरण की जरूरत नहीं पड़ती या फिर यूं कहें कि जो प्राकृतिक तरीके से हवा ब्लॉक कर रही है उसी से हवा को ठंडा किया जाता है इसीलिए इसको नेचुरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर कहा जाता है।
इस प्रकार के कूलिंग टावर की ऊंचाई जितनी ज्यादा होगी, हमें कूलिंग टावर की एफिशिएंसी उतनी ही ज्यादा अच्छी मिलेगी। नेचुरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर की ऊंचाई लगभग 200 मीटर रहती है। जैसा कि आप सभी जानते हैं हवा धरती से जितना ऊपर जाती जाएगी उसका प्रेशर उतना ही कम होता जाएगा। और हवा हमेशा ज़्यादा प्रेशर से कम यानी लो प्रेशर की तरफ बहती है। और इसी सिद्धांत के ऊपर हमारे ये कूलिंग टावर काम करते हैं।
अब कूलिंग टावर में नीचे से हवा इसके अंदर आती है, और इसके फिर अंदर बीच में फिन्स लगाए जाते हैं जिनके ऊपर गर्म पानी को बौछारों के साथ गिराया जाता है। और यह गर्म पानी नीचे से आने वाली ठंडी हवा के संपर्क में आता है, जिसके कारण इनका तापमान आपस में बदल जाता है। यानी जो गर्म पानी है, वो ठंडा हो जाता है और जो हवा ठंडी थी वो गर्म होके ऊपर की तरफ निकल जाती है।
Mechanical Forced Draft Cooling Tower
मैकेनिकल फोर्स ड्राफ्ट कूलिंग टावर में जो हवा पानी को ठंडी करती है वो नैचुरल तरीके से न जाके प्रेशर द्वारा यानी फैन और मोटर का उपयोग करके कूलिंग टावर के अंदर भेजा जाता है। मोटर और फैन को कूलिंग टावर में लगे फिन्स के नीचे लगाया जाता है। ये फैन यानी पंखे बहुत ही तेजी के साथ ठंडी हवा को फिन्स की तरफ फेंकते हैं जिसके संपर्क में फिन्स के ऊपर गिरने वाला पानी आता है और पानी तेजी के साथ बड़ी आसानी से ठंडा होके कूलिंग टावर के टैंक में आ जाता है।
Mechanical induced draft cooling tower
मैकेनिकल इंड्यूस्ड ड्राफ्ट कूलिंग टॉवर का उपयोग उद्योगों में सबसे ज्यादा किया जाता है। या फिर यूं कहें उद्योगों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला कूलिंग टावर ये मेकनिकल ड्राफ्ट कूलिंग टावर ही होता है। अब इस में भी मोटर के द्वारा पंखे से हवा का बहाव किया जाता है। लेकिन इसमें हवा के लिए जो पंखे लगाए जाते हैं, उनके द्वारा हवा को इसके अंदर से बाहर की तरफ खींचा जाता है। यानी के मेकनिकल फोर्स्ड ड्राफ्ट कूलिंग टावर में नीचे से हवा ऊपर फेंकी जाती है।
जबकि मैकेनिकल फोर्स ड्राफ्ट कूलिंग टॉवर में हवा खींचने के लिए कूलिंग टावर के ऊपर पंखा लगाया जाता है। जिसके कारण यह नीचे से हवा को खींच के ऊपर की तरफ फेंकता है। मैकेनिकल फोर्स ड्राफ्ट कूलिंग टावर के नीचे पंखे की जगह एक जाली लगाई जाती है, अब इस जाली से हवा कूलिंग टावर के अंदर आती है जिसको कूलिंग टॉवर के ऊपर लगा पंखा खींच के बाहर फेंकता है। इसी दौरान हवा फिन्स के संपर्क में आती है और यहाँ पे जो पानी फिन्स के ऊपर गिरता है वो ठंडा होता है।
हाइब्रिड ड्राफ्ट कूलिंग टावर
हाइब्रिड ड्राफ्ट कूलिंग टावर में जो फिन्स लगे होते हैं, उसके ऊपर और नीचे दोनों तरफ से हवा का फ्लो कराया जाता है। अब जैसे नीचे से आने वाली हवा फिन्स पे गिरे गर्म पानी के संपर्क में आने से गर्म होने के साथ साथ पानी की नमी को भी सोख के ऊपर की तरफ उठती है। इसी दौरान ऊपर की तरफ से जो हवा का फ्लो होता है, वो हवा सूखी हवा होती है जो इस गर्म हवा की नमी को ठंडा करके पानी मे बदलती है। और ये पानी फिर से वापिस कूलिंग टावर में चला जाता है।
- इस तरह के कूलिंग टॉवर का उपयोग करने से पानी की बचत होती है।
- हाइब्रिड ड्राफ्ट कूलिंग टॉवर की कार्यक्षमता बहुत अच्छी होती है।
- हाइब्रिड ड्राफ्ट कूलिंग टावर का उपयोग रेजिडेंशियल और एअरपोर्ट जैसे एरिया में किया जाता है।
हवा के बहाव के आधार पर कूलिंग टॉवर के प्रकार
Counter Flow Cooling Tower
एयर फ्लो के आधार पर कूलिंग टॉवर का एक प्रकार काउंटर फ्लो कूलिंग टॉवर होता है। इस कूलिंग टावर में पानी के अपोज़िट दिशा से हवा का बहाव दिया जाता है, ऐसे कूलिंग टॉवर को काउंटर फ्लो कूलिंग टावर कहा जाता है।
क्रॉस फ्लो कूलिंग टावर
कूलिंग टावर में जो हवा का बहाव होता है, वो पानी को होरिजेंटली क्रॉस करता है। यानी इस कूलिंग टावर में पानी ऊपर से फिन्स के माध्यम से होता नीचे गिरता है। और नीचे बराबर मैं लगे पंखों के द्वारा हवा को पानी से क्रॉस करवाया जाता है। इस तरह के कूलिंग टावर को क्रॉस फ्लो कूलिंग टावर कहते हैं।
कूलिंग टावर के मुख्य भाग/पार्ट
फैन मोटर
फैन मोटर कूलिंग टॉवर का सबसे मुख्य हिस्सा होता है। ज्यादातर कूलिंग टावर में इसको ऊपर की तरफ लगाया जाता है। किसी किसी में ये नीचे की तरफ या फिर कूलिंग टॉवर की साइड में लगाई जाती है। ये सब हमारे कूलिंग टावर के डिजाइन के ऊपर निर्भर करता है। इसका मुख्य काम कूलिंग टावर में लगे फैन यानी पंखे को घुमाके हवा के बहाव को बनाना होता है।
फैन
कूलिंग टावर में लगने वाला फैन एक शाफ़्ट ओर गियरबॉक्स द्वारा कूलिंग टावर में लगी मोटर के साथ जुड़ा रहता है। इसका काम कूलिंग टॉवर में हवा के बहाव को बनाए रखना होता है। किसी कूलिंग टावर ये हवा को खींचता है, और किसी डिजाइन वाले कूलिंग टावर में ये हवा को बाहर की तरफ फेंक के हवा के फलों यानी बहाव को बनाए रखता है।
एलिमिनेटर
जब फैन के द्वारा हवा को कूलिंग टॉवर से बाहर की तरफ खींचा जाता है, तो पानी नीचे की तरफ गिरता रहता है अब हवा को खींचने के दौरान पानी भी हवा के साथ बाहर ना निकल जाए इसको रोकने के लिए एलिमिनेटर लगाते है। ये हवा को तो बाहर भेजता है, लेकिन पानी को बाहर जाने से रोकने का काम करता है।
हैडर
हैडर को कूलिंग टॉवर के ऊपर की तरफ लगाया जाता है। यहाँ पे कंडेनसर पंप के द्वारा गर्म पानी को लाया जाता है। इस हैडर के ही साथ नोजल कनेक्ट की जाती हैं।
नोजल/स्प्रिंक्लर
अब ये जो नोजल होती है, ये हेडर के साथ कनेक्ट रहती हैं। इनको हम स्प्रिंक्लर भी कह सकते हैं। इनका काम हैडर में आए गर्म पानी को बारिश की तरह बोछारों के साथ नीचे कूलिंग टावर में लगे फिन्स के ऊपर गिराना होता है। अब इस तरह से बौझार करने से पानी का सरफेस एरिया बढ़ जाता है। जिसके कारण पानी बड़ी आसानी से और जल्दी ठंडा हो जाता है।
पीवीसी फीलिंग
पीवीसी फीलिंग्स को इन नोज़ल या स्प्रिंक्लर के नीचे लगाया जाता है। इनको ही कूलिंग टावर में फिन्स कहा जाता है। स्प्रिंकलर से बौछार किया गया पानी इन पीवीसी फीलिंग्स यानी फिन्स के ऊपर आकर गिरता है। जैसे ही पानी यहाँ पर गिरता है तो इसमें जगह कम होने के कारण पानी थोड़ी देर यहीं रुकता है, और जैसे ही नीचे से हवा आती है तो इस पानी के के संपर्क में आके हवा इस पानी को ठंडा कर देती है। फिर धीरे धीरे पानी नीचे गिरता रहता है।
मैश
मैश का मतलब जाल भी होता है। ये एक जाली होती है, जो कूलिंग टावर में लगाई जाती है। इसका काम कूलिंग टावर में किसी भी तरह के कचरे को आने से रोकने का होता है। जब कूलिंग टावर में लगा फैन हवा को खींचता है, तो वो हवा नीचे से इन जालियों से होती हुई ही अंदर आ जाती है। और इस हवा के साथ कचरा अंदर न आने पाए, उसको रोकने के लिए ही कूलिंग टावर में मैश का उपयोग किया जाता है।
फ्लोट वॉल
फ्लोट वाल्व का काम कूलिंग टावर में पानी के लेवल को मेंटेन करने का होता है। अब जैसा की आप जानते हैं कूलिंग टावर के नीचे एक टैंक होता है इसमें पानी भरा होता है। और अब जैसे ये पानी आगे जाके मशीन की गर्मी को अपने अंदर सोंखता है, और बाहर कूलिंग टॉवर में आता है तो कुछ पानी इवैपोरेशन के कारण भांप में बदल के बाहर हवा में उड़ जाता है, तो थोड़ी थोड़ी देर में कुलिंग टावर में पानी कम होने लगता है।
अब इस कम हुए पानी को मेंटेन करने के लिए एक मेकअप टैंक होता है। उस मेकअप टैंक से पानी कूलिंग टावर में आता है। अब जैसे ही कूलिंग टावर में पानी का लेवल मेंटेन हो जाता है, तो इसमें लगी ये फ्लोट वाल्व ऊपर उठ जाती है, और कूलिंग टावर में लगी वाल्व को ये बंद कर देती है। जिससे कूलिंग टॉवर में पानी आना बंद हो जाता है। इस वाल्व के आगे एक प्लास्टिक की बोल लगी होती है और इसमें हवा भरी होती है। इसी कारण ये पानी भरने पे ऊपर की तरफ उठ जाती है।
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ओवरफ्लो लाइन
ओवरफ्लो लाइन का उपयोग कूलिंग टावर से अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने के लिए किया जाता है। मान लीजिए किसी भी हालत में कूलिंग टावर में लगी वाल्व अगर खराब हो जाती है तो उसमें मेकअप टैंक से लगातार पानी आता रहेगा। और ऐसे लगातार पानी आने के कारण कूलिंग टॉवर से पानी का ओवरफ्लो हो सकता है। तो इसी कारण से इसमें ओवरफ्लो लाइन दी जाती है, ताकि सारा ओवरफ्लो वाला पानी इस लाइन से होता हुआ ड्रेन में चला जाए।
ड्रेन वाल्व
कूलिंग टॉवर का जो मेन टैंक होता है उसके अंदर एक अलग से ड्रेन वाल्व भी लगाई जाती है। क्योंकि कूलिंग टावर लगातार पानी आता जाता रहता है। जिसके कारण इसमें कुछ ना कुछ कचरा आ जाता है और इसमें कुछ न कुछ गंदगी जम ही जाती है। तो इसको साफ करने के लिए ही इस ड्रेन वाल्व का उपयोग होता है। इस ड्रेन वाल्व को खोल के हम कूलिंग टावर में जितना भी पानी है उसको बाहर निकाल सकते हैं। और उसके बाद हम कूलिंग टावर के टैंक की बड़ी आसानी के साथ सफाई कर सकते हैं।
ब्लीड वाल्व
कूलिंग टावर में ब्लीड वाल्व का भी बहुत महत्त्व होता है। कूलिंग टावर में जो पानी आता है उसमें कुछ न कुछ मिनरल जरूर होते हैं, और जब वाष्पीकरण के दौरान पानी हवा में उड़ जाता है, तो ये सारे मिनरल कूलिंग टॉवर में ही इकट्ठा होने लगते हैं। अब धीरे धीरे जैसे जैसे समय बीतता है उसके साथ ही ये मिनरल बहुत ज्यादा हो जाते हैं। और टैंक में ही जम जाते हैं।
धीरे धीरे ये मिनरल कूलिंग टॉवर के टैंक से कंडेनसर की तरफ जाते रहते है। और फिर धीरे धीरे कंडेनसर की ट्यूब में भी जम जाते है। और कंडेनसर की ट्यूब को जाम कर देते हैं। जिससे कंडेसर की ट्यूब ब्लॉक हो जाती है। और इनके कारणजो हमारा प्लांट या मशीनों जो ठंडा करने का काम करते हैं, उसकी जो कार्यक्षमता होती है वो बहुत ही कम हो जाती है। इसको रोकने के लिएब्लीड वाल्व दिया जाता है।
कूलिंग टावर में होने वाले लॉस
इवेपरेशन लॉस
कूलिंग टावर में जब गर्म पानी आता है, तो वो नोजल के द्वारा फिन्स के ऊपर बौछार के द्वारा गिराया जाता है। अब यह पानी गर्म होने के कारण इसमें वाष्प बनती है, जिसके कारण टावर में हवा के बहाव के लिए लगाया गया पंखा इन वाष्प को खींच के हवा के साथ बाहर निकाल देता है। इसके कारण थोड़े थोड़े समय के बाद कूलिंग टावर में पानी कम होने लगता है। अब इस कम होने वाले पानी को हम इवैपोरेशन लॉस कहते हैं।
ड्रिफ्ट लॉस
जब कूलिंग टॉवर से हवा को बाहर की तरफ खींचा जाता है, तो कूलिंग टावर के नीचे वाले हिस्से से हवा कूलिंग टावर के अंदर आती है। और फैन के द्वारा ऊपर की साइड तरफ निकल जाती है। अब इस हवा के साथ साथ पानी के पार्टिकल यानी पानी की बूंदें भी बाहर निकलती रहती है। जिसके कारण भी कूलिंग टावर में पानी की कमी हो जाती है। अब इस तरह से जो पानी की कमी होती है, उसको हम ड्रिफ्ट लॉस या फिर विंटेज लोस कहते हैं।
ब्लोडाउन लॉस
कूलिंग टावर में इवैपोरेशन के कारण जो वाष्प बनती है, उनके कारण जो पानी बाहर जाता है वो प्योर पानी यानी शुद्ध पानी होता है। और जो पानी में मिनरल्स होते हैं, ये मिनरल कूलिंग टावर में जो बाकी का पानी बचा हुआ है उसके अंदर मिल जाते हैं। अब ये मिनरल्स पानी के साथ कंडेनसर में जाते हैं और थोड़े समय के बादकंडेनसर की ट्यूब में जम जाते हैं और उसको खराब कर देते हैं।
इसीलिए हमारे कंडेनसर को खराब होने से बचाने के लिए ये ज़्यादा मिनरल वाला जो पानी होता है उसको कूलिंग टावर से ड्रेन करके बाहर निकाल दिया जाता है। अब हमने बाहर निकाला है तो जो हमारा पानी था वो वेस्ट गया है। तो इसको भी हम लॉस में ही गिनते हैं। अब इस तरह से पानी के लॉस कोब्लोडाउन लॉस कहा जाता है।
कूलिंग टॉवर के पैरामीटर्स
- कूलिंग टावर में जो पानी हम उपयोग करते हैं, उसकी पीएच वैल्यू 7.5 से 9.0 तक होनी चाहिए।
- कूलिंग टॉवर के पानी की Total हार्डनेस 150 से 450 ppm होनी चाहिए।
- कूलिंग टॉवर के पानी की Calcium Hardness 60 से 250 ppm होनी चाहिए।
- कूलिंग टॉवर के पानी की Magnesium Hardness 20 से 80 ppm होनी चाहिए।
- कूलिंग टॉवर के पानी की P Alkalinity 50 से 80 ppm होनी चाहिए।
- कूलिंग टॉवर के पानी की M Alkalinity 20 से 200 ppm होनी चाहिए।
- कूलिंग टॉवर के पानी की Total Alkalinity 50 से 200 ppm होनी चाहिए।
- कूलिंग टॉवर के पानी की Chloride 50 से 250 ppm होनी चाहिए।
- टीडीएस यानी टोटल डिसोल्व सॉलिड 4500 पीपीएम से कम होना चाहिए।
- कूलिंग टॉवर के पानी की (COC) Cycle of Concentration 3 से 6 होनी चाहिए।
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FAQ
कूलिंग टावर क्या है?
पानी को हवा द्वारा ठंडा करने के लिए जो मशीन लगाई जाती है, उसको ही Cooling Tower कहते है।
Cooling Tower के काम करने का सिद्धांत
Cooling Tower के काम करने का सिद्धांत Evaporation होता है। इसमें पानी सीधा ही हवा के संपर्क में आता है इसके साथ पानी का एरिया बढ़या जाता है और जल्दी से ठंडा होता है।
Types of Cooling Tower
नेचुरल ड्राफ्ट कूलिंग टावर
Mechanical Forced draft cooling tower
Mechanical induced draft cooling tower
हाइब्रिड ड्राफ्ट कूलिंग टावर
Counter Flow Cooling Tower
क्रॉस फ्लो कूलिंग टावर
कूलिंग टावर में होने वाले लॉस
इवेपरेशन लॉस
ड्रिफ्ट लॉस
ब्लोडाउन लॉस
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