इंजन कितने प्रकार के होते हैं | Engine Kitne Prakar ke Hote Hain

Engine Kitne Prakar ke Hote Hain

Table of Contents

इंजन कितने प्रकार के होते हैं | Engine Kitne Prakar ke Hote Hain

आज का हमारा टॉपिक है बेसिक्स ऑफ इंजन और पोस्ट में हम जानेंगे कि इंजन क्या होता है, इंजन को कितने टाइप से क्लासिफाई किया जाता है यानी इंजन के कौन-कौन से प्रकार होते हैं। तो सबसे पहले जानते हैं कि इंजन को कैसे परिभाषित किया जाता है।

इंजन एक ऐसी यांत्रिक मशीन है, जो ईधन यानी फ्यूल के जलने से प्राप्त हुई ऊष्मीय ऊर्जा यानी हीट एनर्जी को मैकेनिकल वर्क यानी यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करती है। जब इंजन के अंदर ईधन का दहन होता है, तो ईधन की रासायनिक ऊर्जा यानी केमिकल एनर्जी हीट एनर्जी में बदल जाती है और इस हीट एनर्जी को मैकेनिकल यानी यांत्रिक एनर्जी में परिवर्तित किया जाता है।

पोस्ट मे सबसे निचे जाके इसकी PDF भी डाउनलोड कर सकते हैं

चूंकि यहां पर हीट एनर्जी को मैकेनिकल एनर्जी में बदला जाता है इसीलिए इन्हें हम हीट इंजन कहते हैं। तो आप संक्षेप में समझ गए होंगे कि इंजन के अंदर ईधन का दहन होता है, जिससे ईधन की रासायनिक ऊर्जा ऊष्मीय ऊर्जा में बदल जाती है और इस ऊष्मीय ऊर्जा यानी हीट एनर्जी के द्वारा मैकेनिकल यानि यांत्रिक कार्य किया जाता है।

क्लासिफिकेशंस ऑफ इंजन या टाइप्स ऑफ इंजन

मूल रूप से बात की जाए तो इंजन को दो प्रकार से क्लासिफाई किया जाता है:-

  • एक्सटर्नल कंबशन इंजन
  • इंटरनल कंबशन इंजन

आइए अब इन दोनों के विषय में संक्षेप में जानते हैं।

एक्सटर्नल कंबशन इंजन

जैसा कि इसके नाम से मालूम चल रहा है कि यह ऐसे इंजन है जिनमें फ्यूल यानी ईधन का कंबशन इंजन सिलेंडर के बाहर होता है जैसे भाप का इंजन। अगर बात की जाए भाप इंजन या स्टीम इंजन की तो इनमें पहले कोयले को जलाकर पानी को गर्म किया जाता है। इस पानी को भाप में बदला जाता है और इस भाप यानी स्टीम को इंजन केअंदर ले जाकर इंजन को चलाया जाता है, जिससे मैकेनिकल एनर्जी उत्पन्न होती है।




तो स्टीम इंजन ऐसे इंजन है जिनमें इंजन के बाहर या इंजन सिलेंडर के बाहर ईधन का दहन किया जाता है इसलिए स्टीम इंजन एक एक्सटर्नल कंबशन इंजन है स्टीम इंजन के साथ ही टरबाइन इंजन भी एक्सटर्नल कंबशन इंजन होते हैं। स्टीम इंजल्स में बॉयलर, फर्नेस, कंडेंसर इत्यादि पार्ट्स की जरूरत होती है। इसलिए यह इंजन भारी होते हैं एवं अधिक जगह घेरते हैं।

Engine Kitne Prakar ke Hote Hain,

इन इंजंस को स्टार्ट करने के पहले पानी को गर्म करके भाप में बदलना होता है इसलिए इन इंजन को स्टार्ट करने में अधिक समय लगता है इसके साथ ही यह इंजंस अपेक्षाकृत कम गति पर काम करते हैं, इनकी थर्मल एफिशिएंसी IC इंजन यानी इंटरनल कंबशन इंजन से कम होती है और यह इंजन सामान्यतः डबल एक्टिंग इंजन होते हैं

इंटरनल कंबशन इंजन यानी IC इंजन

IC इंजन वे इंजन होते हैं जिनमें इंजन सिलेंडर के अंदर ही ईधन यानी फ्यूल का दहन होता है, जैसे कि पेट्रोल इंजन डीजल इंजन या गैस इंजन। ये ऐसे इंजंस हैं जिनमें इंजन सिलेंडर के अंदर ही पेट्रोल, डीजल या गैस का दहन होता है। इस दहन से प्राप्त हुई ऊष्मीय ऊर्जा यानी हीट एनर्जी को मैकेनिकल एनर्जी में बदला जाता है। वर्तमान समय में हमारे आसपास हम जितने भी इंजन देखते हैं, जैसे कि पेट्रोल इंजन, डीजल इंजन या गैस इंजन ये सभी इंटरनल कंबशन यानी IC इंजन हैं।

👇Click Below👇

👉📖Electrician and MST Fresher Basic Interview eBook📖👈

इंटरनल कंबशन इंजन का क्लासिफिकेशन

IC इंजन को कई प्रकार से क्लासिफाई किया जा सकता है, जैसे कि:-

  • स्ट्रोक के आधार पर
  • फ्यूल या यानी ईधन के आधार पर
  • ईधन को जलाने वाली विधि के आधार पर
  • ऑपरेशन साइकिल के आधार पर
  • सिलेंडरों की संख्या के आधार पर
  • सिलेंडरों के अरेंजमेंट के आधार पर
  • कूलिंग सिस्टम के आधार पर
  • स्पीड के आधार पर
  • उपयोग के आधार पर
  • एप्लीकेशंस के आधार पर
  • वाल्व अरेंजमेंट के आधार पर

तो यह कुछ बेसिक्स हैं जिनके आधार पर इंजन को क्लासिफाई किया जा सकता है। आइए एक-एक करके इनके बारे में जान लेते हैं।

स्ट्रोक के आधार पर

स्ट्रोक के आधार पर इंजन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:-

  • टू स्ट्रोक इंजन
  • फोर स्ट्रोक इंजन

इंजन में स्ट्रोक क्या होता है?

इनको समझने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि यह स्ट्रोक क्या होता है। तो देखिए इंजन सिलेंडर के अंदर पिस्टन के द्वारा किसी भी एक दिशा में चली गई दूरी स्ट्रोक कहलाती है। यानी कि पिस्टन नीचे से ऊपर यानी BDC से TDC तक जाए तो वो एक स्ट्रोक कहलाएगा या फिर वह ऊपर से नीचे यानी TDC से BDC तक आए तब भी एक स्ट्रोक कहलाएगा। यानी कि पिस्टन का किसी भी एक दिशा में चलना एक स्ट्रोक कहलाता है।

Engine Kitne Prakar ke Hote Hain

किसी भी इंजन की वर्किंग की एक साइकिल मुख्यतः चार प्रोसेस में पूरी होती है सक्शन, कंप्रेशन, पावर और एग्जॉस्ट, यदि किसी इंजन में यह चारों प्रोसेस पिस्टन के दो स्ट्रोक में पूरे हो जाए तो उन्हें हम टू स्ट्रोक इंजन कहते हैं और यदि यह चारों प्रोसेस चार स्ट्रोक में पूरे हो तो उन इंजन को हम फोर स्ट्रोक इंजन कहते हैं पुराने समय में उपयोग होने वाले स्कूटर्स टू स्ट्रोक इंजन की उदाहरण है। और वर्तमान में लगभग जितने भी इंजन प्रयोग किए जा रहे हैं जिन्हें आप अपने आसपास देखते हैं वह सभी के सभी फोर स्ट्रोक इंजन है।

फ्यूल आधारित इंजन

इंजन में प्रयोग होने वाले फ्यूल के आधार पर इंजन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:-

  • डीजल इंजन
  • पेट्रोल इंजन
  • गैसोलीन इंजन

डीजल इंजन वे इंजन होते हैं जिनमें फ्यूल के रूप में डीजल का प्रयोग किया जाता है, पेट्रोल इंजनों में फ्यूल के रूप में पेट्रोल का प्रयोग किया जाता है एवं गैसोलीन इंजनों में फ्यूल के रूप में CNG, LPG, बायोगैस और कोल गैस इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रज्वलन यानी इग्निशन आधारित

इग्निशन मेथड यानी कि इंजन के अंदर फ्यूल को किस प्रकार से जलाया जाता है उसके आधार पर इंजन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:-

  • स्पार्क इग्निशन इंजन
  • कंप्रेशन इग्निशन इंजन
स्पार्क इग्निशन इंजन

स्पार्क इग्निशन इंजन यानी SI इंजनों में कंप्रेशन स्ट्रोक के समय हवा एवं पेट्रोल के मिश्रण को दबाया जाता है, जिससे उस मिक्सचर का टेंपरेचर और प्रेशर अत्यधिक बढ़ जाता है। जब इस मिक्सचर का प्रेशर और टेंपरेचर बढ़ जाता है उस समय स्पार्क प्लग के द्वारा चिंगारी उत्पन्न करके ईधन का दहन प्रारंभ किया जाता है। जिससे एनर्जी उत्पन्न होती है।

संक्षेप में कहे तो स्पार्क इग्निशन इंजनों में स्पार्क प्लग के द्वारा चिंगारी उत्पन्न करके ईधन का दहन प्रारंभ किया जाता है, चूंकि इन इंजनों में स्पार्क प्लग के द्वारा फ्यूल को जलाया जाता है इसलिए इन्हें हम स्पार्क इग्निशन इंजन कहते हैं। पेट्रोल इंजन एवं गैसोलीन इंजन स्पार्क इग्निशन इंजन होते हैं इन्हें हम संक्षेप में SI इंजन भी कहते हैं।

कंप्रेशन इग्निशन इंजन

कंप्रेशन इग्निशन इंजन में कंप्रेशन स्ट्रोक के दौरान केवल हवा को दबाया जाता है, हवा के दबने से इसका प्रेशर और टेंपरेचर अत्यधिक बढ़ जाता है। जब इसका टेंपरेचर अत्यधिक बढ़ जाता है उस समय फ्यूल की फुहार का स्प्रे इस हवा पर किया जाता है। जब ये हवा और डीजल एक दूसरे के संपर्क में आते हैं, तो इस डीजल का टेंपरेचर उसके सेल्फ इग्निशन टेंपरेचर तक पहुंच जाता है। जिसके कारण ही डीजल अपने आप जलना प्रारंभ कर देता है। चूंकि यहां पर डीजल खुद से जल रहा है, और यहां पर किसी प्रकार के स्पार्क प्लग का प्रयोग नहीं किया जा रहा है इसलिए इन इंजनों को सेल्फ इग्निशन इंजन या ऑटो इग्निशन इंजन कहते हैं।

इन इंजनों में स्पार्क प्लग का प्रयोग नहीं होता बल्कि हवा के कंप्रेशन के द्वारा उच्च ताप प्राप्त करके ईधन को जलाया जाता है। इसलिए यह इंजन कंप्रेशन इग्निशन इंजन कहलाते हैं। डीजल इंजन सामान्यतः कंप्रेशन इग्निशन इंजन होते हैं और इन इंजनों को संक्षेप में CI इंजन कहा जाता है।

ऑपरेशन साइकिल आधारित इंजन

ऑपरेशन साइकिल आधारित इंजन की क्रियाविधि का एक सेट मुख्यतः चार चरणों में पूरा होता है सक्शन, कंप्रेशन, पावर एवं एग्जॉस्ट। इन चारों प्रक्रियाओं के सेट को एक इंजन साइकिल कहा जाता है। मुख्य रूप से इंजन साइकिल दो प्रकार की होती हैं और उनके आधार पर इंजन भी दो प्रकार के होते हैं:-

  • ऑटो साइकिल इंजन
  • डीजल साइकिल इंजन
ऑटो साइकिल इंजन

ऑटो साइकिल इंजन का आविष्कार वैज्ञानिक निकोलस ऑटो ने किया था इन्हीं के नाम पर इस इंजन को ऑटो इंजन भी कहा जा है। ऑटो साइकिल को कांस्टेंट वॉल्यूम साइकिल भी कहते हैं इसलिए इस इंजन को कांस्टेंट वॉल्यूम साइकिल इंजन भी कहा जाता है। पेट्रोल इंजन और गैसोलीन इंजन मुख्य रूप से ऑटो साइकिल पर आधारित होते हैं।

All Type Electrical Motor Starters eBook

डीजल साइकिल इंजन

अगर बात की जाए डीजल साइकिल इंजन की तो इन इंजनों का आविष्कार रूडोल्फ डीजल नाम के वैज्ञानिक ने किया था। रूडोल्फ डीजल के नाम पर ही इस साइकिल को डीजल साइकिल एवं इंजनों को डीजल इंजन कहा जाता है। डीजल साइकिल इंजन कांस्टेंट प्रेशर साइकिल पर कार्य करते हैं इसलिए इन्हें कांस्टेंट प्रेशर साइकिल इंजन भी कहा जाता है। डीजल इंजनों में मुख्यतः फ्यूल के रूप में डीजल का प्रयोग किया जाता है।

सिलेंडरों की संख्या आधारित

सिलेंडरों की संख्या के आधार पर इंजन मुख्यतः दो प्रकार के हो सकते हैं:-

  • सिंगल सिलेंडर इंजन
  • मल्टी सिलेंडर इंजन
सिंगल सिलेंडर इंजन

सिंगल सिलेंडर इंजन यानी वे इंजन जिनमें एक सिलेंडर का प्रयोग होता है, एवं मल्टी सिलेंडर इंजन वे इंजन होते हैं जिनमें एक से अधिक सिलेंडर का प्रयोग किया जाता है। सामान्यतः बाइक में प्रयोग होने वाले इंजन या कृषि कार्यों में प्रयोग होने वाले इंजन एवं कम शक्ति उत्पन्न करने के लिए प्रयोग होने वाले इंजनों में सिंगल सिलेंडर इंजनों का प्रयोग किया जाता है।

मल्टी सिलेंडर इंजन

सामान्यतः मल्टी सिलेंडर इंजन 2, 3, 4, 6 या 8 सिलेंडर के हो सकते हैं। सभी प्रकार की कारों, ट्रकों, बसों इत्यादि में मल्टी सिलेंडर इंजनों का ही प्रयोग किया जाता है। 3 या 4 सिलेंडर इंजनों का प्रयोग मुख्यत से कार जीप जैसे चौपहिया वाहनों में किया जाता है। छहपहिया या उससे अधिक बड़े वाहनों जैसे कि ट्रक या बसों इत्यादि में छह या आठ सिलेंडर इंजनों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-जैसे सिलेंडरों की संख्या इंजन बढ़ती जाती है इंजन का संचालन उतना ही सुगम होता जाता है।

ये भी पढ़ें: –

सिलेंडर अरेंजमेंट आधारित

सिलेंडरों की व्यवस्था यानी अरेंजमेंट के आधार पर इंजन मुख्यता चार प्रकार के हो सकते हैं:-

  • इनलाइन इंजन
  • अपोज्ड सिलेंडर इंजन
  • V इंजन
  • रेडियल इंजन
इन लाइन सिलेंडर

इन लाइन सिलेंडर इंजनों में सभी सिलेंडर एक ही लाइन में स्थित होते हैं, इन सभी सिलेंडरों में एक ही क्रैंक शाफ्ट का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के इंजनों में क्रैंक शाफ्ट को बहुत लंबा बनाना होता है, इसलिए इस प्रकार के इंजनों में सीमित संख्या में ही सिलेंडरों का प्रयोग किया जा सकता है। यानी कि अधिकतम छह सिलेंडर इंजन वाले इंजनों में ही इनलाइन व्यवस्था का प्रयोग किया जाता है। इनलाइन सिलेंडर इंजनों की बैलेंसिंग काफी अच्छी होती है और इनमें यूनिफॉर्म टॉर्क प्राप्त होता है।

अपोज्ड सिलेंडर इंजन

अपोज्ड सिलेंडर इंजनों में सिलेंडर एक दूसरे के आमने-सामने स्थित होते हैं। इनकी मैकेनिकल बैलेंसिंग काफी अच्छी होती है एवं ये उच्च गति यानी हाई स्पीड पर भी बिना झटके के चल सकते हैं। इस व्यवस्था में सिलेंडर एक दूसरे के आमने-सामने होने से इन इंजन सिलेंडरों की साइज काफी बढ़ जाती है एवं इनमें दो अलग फ्यूल सिस्टम या कार्बोरेटर लगाने की आवश्यकता होती है।

Electrician and MST Fresher Basic Interview eBook

यदि इनमें एक ही फ्यूल पंप या कार्बोरेटर लगाया जाए तो इनमें ठीक प्रकार से फ्यूल की सप्लाई नहीं हो पाती। और यदि अलग-अलग कार्बोरेटर या पंप लगाए जाते हैं तो सभी सिलेंडरों में एक समान एयर फ्यूल रेशो मेंटेन करना कठिन हो जाता है। इसीलिए इस प्रकार के इंजनों का प्रयोग ऑटोमोबाइल वाहनों में कम किया जाता है या ना के बराबर किया जाता है।

V इंजन

V इंजनों में सभी सिलेंडर इस प्रकार से व्यवस्थित रहते हैं कि वो आपस में V शेप बनाते हैं। इस वी शेप का एंगल सामान्यता 45°, 60°, 75° या 90° हो सकता है। किंतु सबसे ज्यादा 60° एंगल वाले V शेप इंजन प्रयोग किए जाते हैं। यह इंजंस काफी कॉम्पेक्टमैप यानी कम जगह घेरते हैं। और बहुत किफायती होते हैं इस प्रकार के इंजनों को v6, v8 या v12 से दर्शाया जाता है, इसमें V इंजन के अरेंजमेंट को दर्शाता है एवं 6, 8 या 12 इंजन में सिलेंडरों की संख्या को दर्शाते हैं।

रेडियल इंजन

रेडियल इंजन में सभी इंजन सिलेंडर इस प्रकार से अरेंज रहते हैं कि ये एक वृत्त यानी सर्कल बनाते हैं। इस प्रकार के इंजनों की फ्यूल एफिशिएंसी बहुत अच्छी होती है। ये अधिक गति पर कार्य भी कर सकते हैं। इसलिए इस प्रकार के इंजनों का प्रयोग मुख्य रूप से हवाई जहाजों में किया जाता है।

कूलिंग सिस्टम आधारित इंजन

कूलिंग सिस्टम यानी इंजन के तापमान को मेंटेन करने वाली प्रणाली इसके आधार पर इंजन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:-

  • एयर कूल्ड इंजन
  • वाटर कूल्ड इंजन
एयर कूल्ड इंजन

एयर कूल्ड इंजनों में इंजन का तापमान मेंटेन रखने के लिए हवा का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के इंजनों में ब्लॉक के बाहरी हिस्से पर एवं इंजन सिलेंडर हेड पर फिंस बने होते हैं। इन फिंस के कारण हेड एवं सिलेंडर ब्लॉक का सरफेस एरिया बढ़ जाता है जिससे अधिक से अधिक हवा इनके संपर्क में आ पाती है। हवा के लगातार संपर्क में आने से यह इंजन ओवरहीट नहीं हो पाते।

ऑटोमोबाइल वाहनों में वाहन के चलते समय हवा इन फिंस पर टकराती है, और यह इंजन ठंडे होते रहते हैं। लेकिन स्टेशनरी इंजनों में अगर एयर कूल्ड इंजनों का प्रयोग किया जाता है तो हमें ब्लोअर का प्रयोग करना होता है। यह ब्लोअर लगातार अत्यधिक गति से हवा को इंजन ब्लॉक पर छोड़ता रहता है। एयर कूल्ड इंजनों का प्रयोग सामान्यतः मोटर साइकिलों या सिंगल सिलेंडर वाले इंजनों में ही किया जाता है।

वाटर कूल्ड इंजन

वाटर कोल्ड इंजनों में इंजन के तापमान को नियंत्रित रखने के लिए कूलेंट मिलाकर पानी का प्रयोग किया जाता है। इस पानी को इंजन के चारों तरफ प्रवाहित करने के लिए इंजन ब्लॉक एवं सिलेंडर हेड में वाटर जैकेट बने होते हैं। इन वाटर जैकेट में हमेशा पानी प्रवाहित होता रहता है, जो इंजन की गर्मी को अवशोषित करता रहता है, और इंजन का तापमान नियंत्रित रहता है। दो पहिया वाहनों को छोड़कर सामान्यता सभी प्रकार के ऑटोमोबाइल वाहनों में वाटर कूल्ड इंजन का ही प्रयोग किया जाता है। आजकल कुछ दो पहिया वाहनों में भी वाटर कूल्ड इंजनों का प्रयोग किया जा रहा है।

Data Centers, BMS & Electrical Engg (English)

स्पीड आधारित इंजन

इंजन की स्पीड के आधार पर इंजन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:-

  • लो स्पीड इंजन
  • मीडियम स्पीड इंजन
  • हाई स्पीड इंजन

ऐसे इंजन जिनकी स्पीड 400 RPM यानी 400 रिवोल्यूशन पर मिनट से कम होती है, वे लो स्पीड इंजन कहलाते हैं।

मीडियम स्पीड इंजन वे इंजन होते हैं जिनकी स्पीड 400 से लेकर 1200 RPM तक होती है।

जिन इंजन की गति 1200 RPM से अधिक है, तो ऐसे इंजन हाई स्पीड इंजन की कैटेगरी में आते हैं।

उपयोग आधारित

उपयोग यानी यूज के आधार पर इंजन मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं:-

  • ऑटोमोबाइल इंजन
  • स्टेशनरी इंजन
  • पोर्टेबल इंजन
  • मरीन इंजन

ऑटोमोबाइल इंजन यानी खुद की एनर्जी से चलने वाले इंजन इन इंजनों का प्रयोग सभी प्रकार के वाहनों में किया जाता है।

पोर्टेबल इंजन वे इंजन होते हैं जो तो मूव नहीं करते लेकिन आवश्यकता होने पर इन्हें एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाया जा सकता है, जैसे कि खेतों में वाटर पंप के रूप में उपयोग होने वाले इंजन और छोटे डीजल इंजन जो कि इलेक्ट्रिसिटी उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। ये सभी पोर्टेबल इंजन होते हैं।

स्टेशनरी इंजन वे इंजन होते हैं, जो एक जगह पर स्टेशनरी रहते हैं यानी स्थिर रहते हैं, इन्हें बार-बार अपनी जगह से बदलना नहीं होता है।

मरीन इंजन समुद्र में चलने वाले जहाजों में प्रयोग किए जाते हैं

एप्लीकेशंस आधारित

एप्लीकेशंस के आधार पर भी इंजन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:-

  • कांस्टेंट स्पीड इंजन
  • वेरिएबल स्पीड इंजन

कांस्टेंट स्पीड इंजन यानी वे इंजन जो एक निश्चित स्पीड पर चलते हैं, जैसे कि वाटर पंप इंजन यह वे इंजन है जिनकी स्पीड को बार-बार चेंज नहीं किया जा सकता। इसलिए यह कांस्टेंट स्पीड इंजन होते हैं।

वेरिएबल स्पीड इंजन का अर्थ है कि जिनकी स्पीड को आवश्यकता अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है जैसे कि ऑटोमोबाइल यानी वाहनों में प्रयोग होने वाले इंजन, जिनकी स्पीड को कम या ज्यादा किया जा सकता है।

Electrical Operation and Maintenance (English Edition)

वल्व अरेंजमेंट आधारित

इंजन में इनलेट एवं एग्जॉस्ट वल्व किस प्रकार से फिट रहते हैं, यानी वल्व अरेंजमेंट के आधार पर इंजन मुख्यतः पांच प्रकार के होते हैं:-

  • आई (I) हेड इंजन
  • एफ (F) हेड इंजन
  • एल (L) हेड इंजन
  • टी (T) हेड इंजन
  • एच (H) हेड इंजन

आई (I) हेड इंजनों में दोनों वल्व सिलेंडर के ऊपर सिलेंडर हेड में फिट रहते हैं।

एफ (F) हेड टाइप इंजनों में एक वल्व तो सिलेंडर हेड में सिलेंडर के ऊपर फिट रहता है, एवं दूसरा वल्व सिलेंडर के समांतर ब्लॉक में फिट रहता है।

एल (L) हेड इंजनों में दोनों वल्व सिलेंडर ब्लॉक में सिलेंडर के समांतर फिट रहते हैं। लेकिन ये सिलेंडर के एक ही ओर फिट रहते हैं।

टी (T) हेड इंजनों में दोनों वल्व सिलेंडर के समांतर सिलेंडर ब्लॉक में लेकिन सिलेंडर के दो ओर स्थित होते हैं।

एच (H) हेड इंजन वे इंजन है जिनमें दोनों वल्व सिलेंडर हेड में एक एंगल पर स्थित होते हैं।

👇👇👇 Download PDF 👇👇👇

तो उम्मीद है आपको Engine Kitne Prakar ke Hote Hain, इंजन कितने प्रकार के होते हैं, Classification of engine, engine classification, types of engine, से जुड़ी हुई पोस्ट आपको पसंद आई होगी। आपको हमारी ये पोस्ट कैसी लगी आप हमें कमेंट में बता सकते हैं या हमसे कांटेक्ट कर सकते हैं। अगर आपको ये पोस्ट ज्ञानवर्धक लगी हो तो दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं। साथ ही हमारे YouTube Channel Electrical Help सब्सक्राइब भी कर सकते हैं।

FAQ

Two Stroke engine kya hota hai?

किसी भी इंजन की वर्किंग की एक साइकिल मुख्यतः चार प्रोसेस में पूरी होती है सक्शन, कंप्रेशन, पावर और एग्जॉस्ट, यदि किसी इंजन में यह चारों प्रोसेस पिस्टन के दो स्ट्रोक में पूरे हो जाए तो उन्हें हम टू स्ट्रोक इंजन कहते हैं।

Four Stroke engine kya hota hai?

किसी भी इंजन की वर्किंग की एक साइकिल मुख्यतः चार प्रोसेस में पूरी होती है सक्शन, कंप्रेशन, पावर और एग्जॉस्ट, यदि किसी इंजन में यह चारों प्रोसेस पिस्टन के चार स्ट्रोक में पूरे हो तो उन इंजन को हम फोर स्ट्रोक इंजन कहते हैं।

कूलिंग सिस्टम आधारित इंजन कितने प्रकार के होते हैं?

कूलिंग सिस्टम यानी इंजन के तापमान को मेंटेन करने वाली प्रणाली इसके आधार पर इंजन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं 1. एयर कूलड इंजन 2. वाटर कूलड इंजन

मल्टी सिलेंडर इंजन क्या होता है?

सामान्यतः मल्टी सिलेंडर इंजन 2, 3, 4, 6 या 8 सिलेंडर के हो सकते हैं। सभी प्रकार की कारों, ट्रकों, बसों इत्यादि में मल्टी सिलेंडर इंजनों का ही प्रयोग किया जाता है। 3 या 4 सिलेंडर इंजनों का प्रयोग मुख्यत से कार जीप जैसे चौपहिया वाहनों में किया जाता है।

स्पार्क इग्निशन इंजन क्या होता है?

स्पार्क इग्निशन इंजन यानी SI इंजनों में कंप्रेशन स्ट्रोक के समय हवा एवं पेट्रोल के मिश्रण को दबाया जाता है, जिससे उस मिक्सचर का टेंपरेचर और प्रेशर अत्यधिक बढ़ जाता है। जब इस मिक्सचर का प्रेशर और टेंपरेचर बढ़ जाता है उस समय स्पार्क प्लग के द्वारा चिंगारी उत्पन्न करके ईधन का दहन प्रारंभ किया जाता है। जिससे एनर्जी उत्पन्न होती है।

Rate this post
Previous articleHow to Calculate Busbar Current Carrying Capacity in Hindi
Next articleFire Extinguisher in Hindi | फायर कितने प्रकार के होते हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here